अधर्म करके जो सुखी हो रहे हैं वे फांसी के मुलजिम हैं : स्वरूपानन्द सरस्वती

खबरीलाल : चातुर्मास्य व्रत अनुष्ठान के चतुर्थ दिन वृंदावन स्थित उड़िया बाबा आश्रम में सत्संग के अवसर पर द्विपीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाराज ने उपस्थित सभी भक्तों एवं श्रद्धालुओं से कहा कि जो व्यक्ति अधर्म करके सुखी हो रहे हैं वे फांसी के मुलजिम हैं। उन्हें उनके किये गए घोर पाप का दुःख भोगना ही पड़ेगा। अगर वे इससे बचना चाहते हैं तो उन्हें मृत्य भय को छोड़ मृत्यु की तैयारी करना पड़ेगा। कोई भी प्राणी मरने से बचना चाहता है। किट पतंग भी चाहते हैं कि उनकी मृत्यु न हो। जब जन्म लिया है तो मृत्यु निश्चित है और मृत्यु पश्चात जन्म भी निश्चित है।
भगवान श्रीराम ने कहा था कि मैं कितना अभागा हूँ कि मुझे पितृ प्यार से वंचित रहना पड़ा और मेरे शोक में मेरे पिता की मृत्यु हो गई। भगवान श्रीराम ने जटायु से उन्हें अपने पिता बनने के लिए कहा। तब जटायु ने उत्तर दिया कि मैं आपका पिता नहीं बनना चाहता हूँ क्यों कि मैं अपने मृत्यु के समय आपको देखकर आपके गोद मे प्राण त्याग करना ज्यादा पसंद करूँगा। राजा दशरथ तो आपके बिना देखे ही प्राण त्याग दिए इसलिए मैं आपका पिता नहीं बनूंगा। आगे महाराजश्री ने कहा कि भगवान निर्बल के लिए हैं जो उन्हें बल प्रदान करते हैं। मरने से बचना है तो भगवान के शरण मे जाना चाहिए। आगे महाराजश्री ने पुनर्जन्म होता है कि नहीं उस पर भी प्रकाश डालते हुए भक्तों को अपनी बात बताई।
सत्संग की शुरुवात ब्रह्मचारी ब्रह्मविद्यानन्द ने मंगलार्चन से किया तत पश्चात पादुका पूजन होने के बाद महाराजश्री ने अपने आशीर्वचन में उक्त बातें कही। आज के सत्संग में स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती , स्वामी सदाशिवेंद्र सरस्वती, साध्वी लक्ष्मी मणि शास्त्री व आदि महात्माओं ने भी अपने विचार रखे। इस अवसर पर बहु संख्या में भक्तों एवं श्रद्धालुओं ने उपस्थित होकर प्रवचन का लाभ उठाया