देश-विदेश

साउथ चीन सी को लेकर दुनिया से भिड़ने को तैयार है चीन ,जाने कारण

पश्चिमी प्रशांत सागर का साउथ चाइना सी यानी दक्षिण चीन सागर बीते कई सालों से चर्चा में है. इस इलाक़े को चीन अपना कहता है और एक बेहद महत्वाकांक्षी परियोजना के तहत वो यहां कृत्रिम द्वीप बना रहा है.मामला केवल चीन का होता तो विवाद नहीं था लेकिन साउथ चाइना सी के आसपास के देश भी इसके कुछ हिस्सों पर अपना दावा जताते हैं. वहीं अमेरिका और पश्चिमी देश, यहां तक कि नैटो ने भी इस इलाक़े में चीन की परियोजना को लेकर कई बार चिंता जताई है.जानकार मानते हैं कि साउथ चाइना सी का विवाद कुछ देशों के बीच के झगड़े से कहीं अधिक है. चीन का यहां बढ़ता दखल विश्व मानचित्र में नए बदलाव की ओर भी इशारा है और आने वाले वक्त में ये बड़े संघर्ष का कारण बन सकता है.लेकिन साउथ चाइना सी चीन के लिए इतना अहम क्यों है? और ऐसी क्या वजह है कि चीन हर हाल में इस इलाक़े को अपने कब्ज़े में चाहता है?

 संसाधनों का अथाह खज़ाना

ऑस्ट्रेलियन नेशनल सेंटर फ़ॉर ओशन रिसोर्सेस एंड सिक्योरिटी के पूर्व निदेशक र्प्रोफ़ेसर क्लाइव स्कोफ़ील्ड कहते हैं चीन और दूसरे मुल्कों को ये एहसास होने लगा है कि आर्थिक और सामरिक तौर पर ये जगह अहम साबित हो सकती है.वो कहते हैं, “कई देशों की दिलचस्पी इस इलाक़े में बढी है क्योंकि उनका मानना है कि इस जगह पर उन्हें कच्चे तेल की ख़ज़ाना मिल सकता है. हालांकि यहां पर संभावित ख़ज़ाना होने की बात पर मुझे संदेह है.”इस इलाक़े में असल में कितना तेल मिल सकता है इसे लेकर कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है. हालांकि प्रोफ़ेसर क्लाइव कहते हैं यहां एक अलग तरह की संपदा है जो चीन के लिए महत्वपूर्ण है. यहां तीस हज़ार प्रकार की मछलियां हैं. और मत्स्य उत्पादन के मामले में वैश्विक स्तर क़रीब 15 फ़ीसदी का मछली उत्पादन करता है और ये काम होता है साउथ चाइना सी से.वो कहते हैं, “साउथ चाइना सी में समुद्र के संसाधनों को लेकर कंम्पीटीशन काफी अधिक है और इन संसाधनों के लिए इस इलाक़े में जाने को लेकर मुल्कों के बीच टकराव की स्थिति पैदा कतई असंभव नहीं.”इस कारण इस इलाक़े में तनाव बढ़ा है और इससे निपटने के लिए चीन यहां अपनी स्थिति और मज़बूत करना चाहता है.एक बेहद दिलचस्प मामला साल 2012 में यहां के स्कारबोरो शोआल में सामने आया जब चीन ने फ़िलीपीन्स से मछुआरों को यहां मछली पकड़ने से रोक दिया. फ़िलिपीन्स के अनुसार ये इलाक़ा उसके विशेष आर्थिक ज़ोन का हिस्सा है. विवाद बढ़ा और फ़िलीपीन्स ने अंतराष्ट्रीय कोर्ट का रुख़ किया.मामले की जांच के लिए संयुक्त राष्ट्र के ‘लॉ ऑफ़ द सी’ कन्वेन्शन के तहत एक ट्राइब्यूनल बनाया गया. ट्राइब्यूनल ने फ़ैसला फ़िलीपीन्स के हक में दिया . कोर्ट ने कहा “चीन के पास ऐतिहासिक तौर पर समुद्री क्षेत्रों के भीतर संसाधनों पर दावा करने का कोई क़ानूनी आधार नहीं है.”प्रोफ़ेसर क्लाइव बताते हैं कि इस मामले में चीन की प्रतिक्रिया अलग रही. कोर्ट के फ़ैसले की प्रतिक्रिया में चीन ने कहा कि ये फ़ैसला केवल एक कागज़ का टुकड़ा है जिसे फेंक दिया जाना चाहिए और मसले का हल बातचीत से किया जाना चाहिए.”

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