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केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा, ‘महिला खतना मौलिक अधिकारों के विरुद्ध’

नई दिल्लीः दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय की नाबालिग लड़कियों के खतना की प्रथा का केन्द्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में विरोध करते हुए इसे महिला के जीवन और मौलिक अधिकारों का हनन करार दिया है. अटार्नी जनरल ने कहा ये प्रथा धर्म का अनिवार्य हिस्सा नही है. ये महिला के जीवन और सेहत के मौलिक अधिकार का हनन है. वहीं बोहरा समुदाय की ओर से प्रथा का समर्थन करते हुए कहा गया इसमे कुछ भी बर्बर नही है. बोहरा समुदाय का कहना है कि महिलाओं का खताना प्रशिक्षित मिडवाइफ़ (दाई) या डाक्टर करते है. समुदाय का कहना है कि ये प्रथा धर्म का अभिन्न हिस्सा है.

इस मामले पर अगली सुनवाई 9 अगस्त को होगी. बता दें कि दाऊदी बोहरा मुस्लिम समुदाय की नाबालिग लड़कियों के खतना की प्रथा को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को भी सुनवाई हुई थी. सीजेआई दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 3 जजों की पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा था कि महिला सिर्फ पति की पसंदीदा बनने के लिए ऐसा क्यों करे? क्या वो पालतू भेड़ बकरियां है? उसकी भी अपनी पहचान है.कोर्ट ने कहा था कि ये व्यवस्था भले ही धार्मिक हो, लेकिन पहली नज़र में महिलाओं की गरिमा के खिलाफ नज़र आती है. सोमवार को कोर्ट ने ये भी कहा था कि सवाल ये है कि कोई भी महिला के जननांग को क्यों छुए? वैसे भी धार्मिक नियमों के पालन का अधिकार इस सीमा से बंधा है कि नियम ‘सामाजिक नैतिकता’ और ‘व्यक्तिगत स्वास्थ्य’ को नुकसान पहुंचाने वाला न हो.

याचिकाकर्ता सुनीता तिवारी ने कहा था कि बोहरा मुस्लिम समुदाय इस व्यवस्था को धार्मिक नियम कहता है. समुदाय का मानना है कि 7 साल की लड़की का खतना कर दिया जाना चाहिए. इससे वो शुद्ध हो जाती है. ऐसी औरतें पति की भी पसंदीदा होती हैं.याचिकाकर्ता के वकील ने कहा था कि खतना की प्रक्रिया को अप्रशिक्षित लोग अंजाम देते हैं. कई मामलों में बच्ची का इतना ज्यादा खून बह जाता है कि वो गंभीर स्थिति में पहुंच जाती है.

“ये बलात्कार के दायरे में आता है”
सोमवार (30 अगस्त) को ही याचिकाकर्ता की वकील इंदिरा जयसिंह ने आगे कहा कि दुनिया भर में ऐसी प्रथाएं बैन हो रही हैं. खुद धार्मिक अंजुमन ऐसा कर रहे हैं. इस्लाम भी मानता है, जहां रहो, वहां के कानून का सम्मान करो. वैसे भी, किसी को भी बच्ची के जननांग छूने की इजाज़त नहीं होनी चाहिए. IPC की धारा 375 की बदली हुई परिभाषा में ये बलात्कार के दायरे में आता है. बच्ची के साथ ऐसा करना पॉक्सो एक्ट के तहत भी अपराध है.सुनवाई के दौरान इस बात पर भी चर्चा हुई कि क्लिटोरल हुड के कट जाने से महिलाएं यौन सुख से वंचित हो जाती हैं.

इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट से आग्रह किया था कि वो मसले पर विस्तार से सुनवाई करे. इस आधार पर सुनवाई न बंद की जाए कि इसका असर पुरुष खतना प्रथा पर भी पड़ सकता है.दरअसल,पिछली सुनवाई में कोर्ट ने कहा था कि धर्म के नाम पर कोई किसी महिला के यौन अंग कैसे छू सकता है? यौन अंगों को काटना महिलाओं की गरिमा और सम्मान के खिलाफ है.

“ये प्रथा अनुच्छेद 14 और 21 का उल्लंघन”
याचिकाकर्ता और पेशे से वकील सुनीता तिवारी का कहना है कि ये प्रथा तो अमानवीय और असंवेदनशील है. लिहाजा इस पर सरकार जब तक और सख्त कानून ना बनाए तब तक कोर्ट गाइडलाइन जारी करे.इसपर सरकार ने कोर्ट को बताया था कि कानून तो पहले से ही है. लेकिन इसमें मौजूद प्रावधानों को फिर से देखा जा सकता है. ताकि मौजूदा दौर के मुताबिक उसे समसामयिक और उपयोगी बनाया जा सके.

याचिका में कहा गया है कि लड़कियों का खतना करने की ये परंपरा ना तो इंसानियत के नाते और ना ही कानून की रोशनी में जायज है. क्योंकि ये संविधान में समानता की गारंटी देने वाले अनुच्छेदों में 14 और 21 का सरेआम उल्लंघन है. लिहाजा मजहब की आड़ में लड़कियों का खतना करने के इस कुकृत्य को गैर जमानती और संज्ञेय अपराध घोषित करने का आदेश देने की प्रार्थना की गई है.

केंद्र ने याचिका का किया था सर्मथन
केंद्र सरकार ने भी सुप्रीम कोर्ट में याचिका का समर्थन करते हुए कहा था कि धर्म की आड़ में लड़कियों का खतना करना जुर्म है और वह इस पर रोक का समर्थन करता है. इससे पहले केंद्र सरकार ने कहा था कि इसके लिए दंड विधान में सात साल तक कैद की सजा का प्रावधान भी है.आपको बता दें कि इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने दाऊदी बोहरा मुस्लिम समाज में आम रिवाज के रूप में प्रचलित इस इस्लामी प्रक्रिया पर रोक लगाने वाली याचिका पर केरल और तेलंगाना सरकारों को भी नोटिस जारी किया था.याचिकाकर्ता और सुप्रीम कोर्ट में वकील सुनीता तिवारी ने याचिका दायर कर इस प्रथा पर रोक लगाने की मांग की है.

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