देहरादून

मोबाइल टावरों से सेना को खतरा, कैंट बोर्ड के अधिकारियों पर सवाल

देहरादून। जन केसरी
कैंट बोर्ड क्षेत्र में लगे मोबाइल टावरों से सेना को खतरा है। क्षेत्र में 60 से ज्यादा बड़े व छोटे अवैध मोबाइल टावर लगे हुए हैं। सेना ने इन टावरों से सुरक्षा का खतरा बताते हुए कैंट बोर्ड से अवैध मोबाइल टॉवर पर उचित कार्रवाई करने से संबंधित पत्र लिखा था। लेकिन कैंट बोर्ड के अधिकारियों की लापरवाही का देन है कि सभी मोबाइल टॉवर वैसे के वैसे लगे हुए हैं। इससे कैंट बोर्ड को करोड़ों रुपये का राजस्व का भी नुकसान हो रहा है।
सेना के एक अधिकारी ने बताया कि वे रक्षा मंत्रालय को भी इस संबंध में अवगत करा चुके हैं। उन्होंने बताया कि उत्तराखंड सब एरिया के आसपास दर्जनों मोबाइल टॉवर लगे हुए हैं। इनमें से कुछ मोबाइल टॉवर नगर निगम क्षेत्र में भी आते हैं। हालांकि ज्यादातर मोबाइल टॉवर कैंट क्षेत्र में है। अधिकारी के अनुसार इन टॉवरों की निगरानी नियमानुसार कैंट बोर्ड के पास होनी चाहिए। जो कि नहीं है। ऐसे में सैन्य क्षेत्र के आसपास लगे मोबाइल टॉवर से खतरा है। इस संबंध में मंत्रालय को दोबारा से रिमांडर भेजकर बताया गया है कि कैंट बोर्ड द्वारा अभीतक अवैध मोबाइल टॉवर के खिलाफ कोई कदम नहीं उठाया गया है।
नोटिस भेजकर की गई सिर्फ खानापूर्ति
कुछ माह पहले कैंट बोर्ड की तत्कालीन सीईओ तनु जैन ने क्षेत्र में लगे अवैध मोबाइल टॉवरों को नोटिस भेजा था। जानकारी के अनुसार दो बार इन सभी को नोटिस भेजने के बाद कैंट बोर्ड ने मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया। इसके पीछे कई वजह बताई जा रही है। सही तरीके से इसकी जांच हुई तो चौकाने वाले खुलासे सामने आयेंगे।
राजस्व को नुकसान
जिन टेलीकॉम कंपनियों के मोबाइल टॉवर जिस किसी के प्रोपर्टी में लगे हुए हैं कंपनियां उन्हें महीने व साल के हिसाब से किराया देती है। जबकि कैंट बोर्ड को फूटी कौड़ी नहीं मिलती है। कैंट बोर्ड के अधिकारी चाहे तो सभी अवैध मोबाइल टॉवरों को वैध करते हुए जुर्माना वसूल सकते हैं। क्योंकि कैंट बोर्ड अगर इन टॉवरों को सील करने की प्रक्रिया शुरू करता है तो निश्चित तौर पर लोग कोर्ट का दरवाजा खटखटायेंगे।
आखिर क्यों हैं अवैध मोबाइल टॉवरों से अधिकारियों को प्रेम
एक ओर इन मोबाइल टॉवरों से सैन्य क्षेत्र को खतरा है। वहीं दूसरी ओर इन मोबाइल टॉवर के टेलीकॉम कंपनियों से अधिकारियों को प्रेम है। वरना ये मोबाइल टॉवर एक दिन में खड़े नहीं हुए होंगे। जानकारी के अनुसार कैंट क्षेत्र में कई ऐसे मोबाइल टॉवर भी हैं जो दस साल से भी ज्यादा समय से लगे हुए हैं। इन दस सालों में कैंट बोर्ड ने कई सीईओ देखे हैं। लेकिन किसी ने भी इस ओर कदम नहीं उठाया। इसके पीछे क्या वजह है अधिकारी ही जाने। बाकि जनता के अपने अपने तर्क हैं।

प्रदूषण बोर्ड से भी लेनी होती है अनुमति
मोबाइल टावर लगाने से पूर्व पहले कैंट बोर्ड से अनुमति लेनी होती है। इसके बाद उत्तराखंड पर्यावरण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से अनुमति लेनी पड़ती है। दोनों विभागों से अनुमति अनिवार्य है। इसके बाद ही क्षेत्र में मोबाइल टॉवर लगा सकते हैं। लेकिन कैंट क्षेत्र में जो भी मोबाइल टॉवर लगे हैं इसके लिए अनुमति नहीं ली गई है।

किसने क्या कहा

बोर्ड मीटिंग में इस विषय पर चर्चा हुई थी। इसके बाद बोर्ड ने क्या एक्शन लिया इसके बारे में अधिकारी ही बता पायेंगे। वैसे मोबाइल टावर अति आवश्यक सेवा की श्रेणी में आता है। इनपर कार्रवाई करना उचित नहीं होगा। कैंट बोर्ड चाहे तो एक प्रस्ताव बनाते हुए इन सभी को नियमितिकरण करते हुए व्यापार कर वसूल सकता है। विनोद पंवार, वर्तमान नामित सदस्य कैंट बोर्ड गढ़ी
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दुर्भाग्य है कि कैंट में कोई भी काम बिना पैसे के नहीं होता है। पानी का कनेक्शन तक के लिए लोगों को कई कई माह तक चक्कर काटने पड़ते हैं। ऐसे में अवैध काम के लिए कैंट बोर्ड खूद जिम्मेदार है। मोबाइल टॉवर अति आवश्यक सेवा है। इन पर अचानक से कार्रवाई करना उचित नहीं होगा। विष्णु प्रसाद गुप्ता, पूर्व उपाध्यक्ष कैंट बोर्ड

 

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