आइये जानते हैं ब्रह्मचारी ब्रह्मविद्यानन्द से की – चातुर्मास्य व्रत क्या होता है
खबरीलाल रिपोर्ट (वृंदावन) : जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के शिष्य ब्रह्मचारी ब्रह्मविद्यानन्द जी महाराज ने चातुर्मास्य व्रत पर प्रकाश डालते हुए बताया कि – हम लोग भारतीय संस्कृति के अनुयायी हैं जो कि हिन्दू नाम से भी जाने जाते हैं। भारतीय संस्कृति चार पुरुषार्थों की पूर्णता को मानव जीवन की पूर्णता को बतलाती है। चार पुरुषार्थों में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का ग्रहण होता है। धर्म के अनुपालन से शेष तीनों की प्राप्ति होती है। आगे ब्रह्मचारी ब्रह्मविद्यानन्द ने बताया कि धर्म का ज्ञान हमे वेदों से होता है, इसलिए हमारी संस्कृति वेद मूलक है। वेदों में दो तरह के धर्मों का वर्णन है – एक प्रवृत्ति और दूसरा निवृत्ति धर्म।
निवृत्ति धर्म मे त्याग पूर्वक सन्यास का ग्रहण है, अपनी सांसारिक इच्छाओं का त्याग करके स्वरूप लाभ प्राप्त करने के लिए व्यक्ति जब कामनाओं का त्याग करता है और सन्यास को ग्रहण करता है तो वह निवृत्तीय मार्ग कहलाता है। निवृत्ति मार्गीय परम्परा ने भारतीय संस्कृति के मूल को सींचा भी है और पुष्पित पल्लवित किया है। इन्ही निवृत्तीय मार्गीय सन्यासियों द्वारा चातुर्मास्य अनुष्ठान किया जाता है, यद्यपि प्रवृत्तीय मार्गीय गृहस्त भी चातुर्मास्य व्रत करते हैं किंतु सर्वदा परिव्रजन करने वाला सन्यासी जब इस व्रत को करते हैं तो इसका वैशिष्ट्य ही अलग है। आज भी चातुर्मास्य काल मे गृहस्तों द्वारा सन्यासियों की सेवा सम्पूर्ण फल को देने वाली होती है । इसमें पक्षो वै मास: के अनुसार पक्ष की मास संज्ञा होती है , अतः चार पखवाड़े का नाम ही चातुर्मास्य होता है।