राजनीतिक मंशा से नहीं बल्िक सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद हुई NRC पर पहल
प्रमोद भार्गव। असम में स्थानीय बनाम विदेशी नागरिकों का मसला राज्य के सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक जीवन को लंबे समय से झकझोर रहा है। असम के लोगों की शिकायत है कि बांग्लादेश से बड़ी संख्या में घुसपैठ करके आए मुस्लिमों ने उनके न केवल आजीविका के संसाधनों को हथिया लिया है, बल्कि कृषि भूमि पर भी काबिज हो गए हैं। इस कारण राज्य की जनसांख्यिकी बिगड़ रही है। लिहाजा यहां के मूल निवासी बोडो आदिवासी और घुसपैठियों के बीच जानलेवा हिंसक झड़पें होती रहती हैं। नतीजतन अवैध और स्थाई नागरिकों की पहचान के लिए सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिकता पत्रक बनाने की पहल हुई। इस दिशानिर्देश के मुताबिक 1971 से पहले असम में रह रहे लोगों को मूल नागरिक माना गया है। इसके बाद के लोगों को अवैध नागरिकों की सूची में दर्ज किया गया है।
2.89 करोड़ लोगों के पास वैध दस्तावेज
इस सूची के अनुसार 3.29 करोड़ नागरिकों में से 2.89 करोड़ लोगों के पास नागरिकता के वैध दस्तावेज हैं। शेष रह गए 40 लाख लोग फिलहाल अवैध नागरिकों की श्रेणी में रखे गए हैं। इस कारण केंद्र और राज्य सरकार के समक्ष बड़ी चुनौती खड़ी हो गई है, क्योंकि ममता बनर्जी इसे गलत ठहराते हुए सर्वोच्च न्यायालय की मंशा पर ही सवाल खड़े कर रही हैं। वहीं गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने स्पष्ट रूप से कहा है कि यह पूरी प्रक्रिया उच्चतम न्यायालय की निगरानी में चल रही है। ऐसे संवेदनशील मामलों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। जो मसौदा आया है, वह अंतिम नहीं है। जो लोग सूची में आने से रह गए हैं वे एनआरसी के समक्ष अपना दावा और आपत्ति पेश कर सकते हैं। जाहिर है कि वोट बैंक की राजनीति के लिहाज के कुछ राजनीतिक दल इस पर अनावश्यक बवाल कर रहे हैं।
अवैध घुसपैठ का मामला नया नहीं
असम में अवैध घुसपैठ का मामला नया नहीं है। 1951 से 1971 के बीच राज्य में मतदाताओं की संख्या अचानक 51 प्रतिशत बढ़ गई। 1971 से 1991 के बीच यह संख्या बढ़कर 89 फीसदी हो गई। 1991 से 2011 के बीच मतदाताओं की तदाद 53 प्रतिशत बढ़ी। 2001 की जनगणना के अनुसार यह भी देखने में आया कि असम में हिंदू आबादी तेजी से घटी है और मुस्लिम आबादी तेजी से बढ़ी है। 2011 की जनगणना में मुस्लिमों की आबादी और तेजी से बढ़ी। 2001 में जहां यह बढ़ोत्तरी 30.9 प्रतिशत थी वहीं 2011 में बढ़कर 34.2 प्रतिशत हो गई। जबकि देश के अन्य हिस्सों में मुस्लिमों की आबादी में 13.4 से 14.2 फीसद के दायरे में ही बढ़ोतरी हुई थी। वर्ष 2001 में असर की 36 विधानसभा सीटें ऐसी थीं जहां मुस्लिम आबादी 35 प्रतिशत से अधिक थी। वर्ष 2011 में ये बढ़कर 39 हो गईं।
हिंदुओं और मुस्लिमों की जनसंख्या में तेजी
इस तथ्य पर भी ध्यान देना होगा कि 1971 में बांग्लादेश के स्वतंत्र होने के बाद से 1991 तक हिंदुओं की जनसंख्या में 41.89 फीसद की वृद्धि हुई, जबकि इसी दौरान मुस्लिमों की जनसंख्या में 77.42 फीसदी की तेज वृद्धि दर्ज की गई। इसी तरह 1991 से 2001 के बीच असम में की जनसंख्या 14.95 प्रतिशत तो मुस्लिमों की 29.3 फीसदी बढ़ी। इस घुसपैठ के कारण असम में जनसंख्यात्मक घनत्व गड़बड़ा गया और सांप्रदायिक दंगों का सिलसिला शुरू हो गया। इसका सबसे ज्यादा खमियाजा बोडो आदिवासियों ने भुगता। इसी का दुष्परिणाम था कि कई बोडो उग्रवादी संगठन अस्तित्व में आ गए। बांग्लादेशी घुसपैठियों की तादाद भी बक्सा, चिरांग, धुबरी और कोकराझार जिलों में सबसे ज्यादा है। इन्हीं जिलों में बोडो आदिवासी हजारों साल से रहते चले आ रहे हैं। लिहाजा बोडो और मुस्लिमों के बीच रह-रहकर हिंसक वारदातें होती रही हैं।
16 साल में ही हिंसा की 15 बड़ी घटनाएं
पिछले 16 साल में ही हिंसा की 15 बड़ी घटनाएं घटी हैं। जिनमें सैकड़ों लोग मारे जा चुके हैं। विवाद की जड़ में स्थानीय आदिवासी और घुसपैठ करके रह रहे अवैध निवासी हैं। दरअसल बोडोलैंड स्वायत्त परिषद क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले गैर बोडो समुदायों ने बीते कुछ समय से बोडो समुदाय की अलग राज्य बनाने की दशकों पुरानी मांग का मुखर विरोध शुरू कर दिया है। इस विरोध में गैर-बोडो सुरक्षा मंच और अखिल बोडोलैंड मुस्लिम छात्र संघ की प्रमुख भूमिका रही है। जाहिर है, यह पहल हिंदू, ईसाई और बोडो आदिवासियों को रास नहीं आ रही। इन घुसपैठियों की भारत में पैठ बढ़ाने में असम राज्य कांग्रेस की भूमिका भी संदिग्ध मानी जाती है। घुसपैठियों को अपना वोट बैंक बनाने के लिए कांग्रेसियों ने इन्हें बड़ी संख्या में मतदाता पहचान पत्र एवं राशन कार्ड तक दिलाए।
इस पहलू की भी अहम भूमिका
बदले में अपने वोट से वे कांग्रेस को उपकृत भी करते रहे। असम में कांग्रेस की लगातार 15 वर्षो तक कायम रही सत्ता में इस पहलू की भी अहम भूमिका मानी जाती है। बहरहाल पिछले चुनावों में सत्ता से कांग्रेस की विदाई और सर्वानंद सोनोवाल के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनने के बाद से इस मोर्चे पर कड़ी कार्रवाई की उम्मीद बंधी। भाजपा ने चुनावों में इसका वादा भी किया था। असम में बिगड़े हालात का अंदाजा इसी तथ्य से लगाया जा सकता है कि धुबरी जिले से सटी बांग्लादेश की 134 किलोमीटर लंबी सीमा-रेखा पर चौकसी की कोई व्यवस्था ही नहीं थी। ब्रह्मपुत्र नदी असम को बांग्लादेश से अलग करती है। इस नदी का पाट इतना चौड़ा और दलदली है जिस पर बाड़ लगाना या दीवार बनाना नामुमकिन है। केवल नावों पर सशस्त्र पहरेदारी के जरिये ही घुसपैठ रोकी जा सकती है।
पूर्वोत्तर और पश्चिम बंगाल घुसपैठ का संकट
स्थिति को देखकर ही फरवरी 2018 में सेनाध्यक्ष बिपिन रावत को कहना पड़ा कि पूवरेत्तर और पश्चिम बंगाल में घुसपैठ का संकट बढ़ता ही जा रहा है। दरअसल 1971 से ही एक सुनियोजित योजना के तहत पूवरेत्तर भारत, बंगाल, बिहार और दूसरे प्रांतों में घुसप