अजब-गजब

इस गुफा में है अजब-गजब रहस्य, आप भी पढ़ें

नई दिल्ली, एजेंसी।

हमारे देश में  बहुत सारी ऐसी जगह हैं जो रहस्यों, रीति-रिवाजों और मान्यताओं के लिए जानी जाती हैं। मध्य प्रदेश के उज्जैन शहर में भी कई स्थान ऐसे है जो रहस्यमयी हैं। उज्जैन में ऐसा ही एक स्थान है राजा भर्तृहरि की गुफा। यह गुफा नाथ संप्रदाय के साधुओं का साधना स्थल है। गुफा के अंदर जाने का रास्ता काफी छोटा है, जिसके कारण वहां सांस लेने में कठिनाई होती है। गुफा में भर्तृहरि की प्रतिमा के सामने एक धुनी भी है, जिसकी राख हमेशा गर्म ही रहती है। राजा भर्तृहरि के साधना स्थल के सामने ही एक अन्य गुफा भी है। मान्यता है कि इस गुफा से चारों धामों के लिए रास्ता जाता है।

राजा भृर्तहरि
प्राचीन उज्जैन को उज्जयिनी के नाम से जाना जाता था। उज्जयिनी के परम प्रतापी राजा विक्रमादित्य हुए थे। विक्रमादित्य के पिता महाराज गंधर्वसेन थे और उनकी दो पत्नियां थीं। एक पत्नी के पुत्र विक्रमादित्य और दूसरी पत्नी के पुत्र थे भर्तृहरि। गंधर्वसेन के बाद उज्जैन का राजपाठ भर्तृहरि को प्राप्त हुआ क्योंकि भर्तृहरि विक्रमादित्य से बड़े थे। राजा भर्तृहरि धर्म और नीतिशास्त्र के ज्ञाता थे।
प्रचलित कथा के अनुसार राजा भर्तृहरि अपनी पत्नी पिंगला से बहुत प्रेम करते थे। एक दिन जब राजा भर्तृहरि को पता चला की रानी पिंगला किसी ओर पर मोहित है तो उनके मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया और वे राजपाठ छोड़कर गुरु गोरखनाथ के शिष्य बन गए। कहा जाता है कि राजा भर्तृहरि की कठोर तपस्या से देवराज इंद्र भी भयभीत हो गए। कही वह वरदान पाकर स्वर्ग पर आक्रमण न कर देंय़ इंद्र ने भर्तृहरि पर एक विशाल पत्थर गिरा दिया। तपस्या में बैठे भर्तृहरि ने उस पत्थर को एक हाथ से रोक लिया और तपस्या में बैठे रहे। इसी प्रकार कई वर्षों तक तपस्या करने से उस पत्थर पर भर्तृहरि के पंजे का निशान बन गया।

यह निशान आज भी भर्तृहरि की गुफा में राजा की प्रतिमा के ऊपर वाले पत्थर पर दिखाई देता है। पंजे का यह निशान काफी बड़ा है, जिसे देखकर सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि राजा भर्तृहरि की कद-काठी कितनी विशाल रही होगी।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button