बाबाओं के तंत्र-मंत्र में फंसी छत्तीसगढ़ की राजनीति
(आलोक मिश्रा)। …..और छत्तीसगढ़ विधानसभा का अंतिम सत्र समाप्त हो गया। माननीयों के पांच साल बीत गए। अब चुनावी वैतरणी पार करके ही अगले माननीय सदन दर्शन कर सकेंगे। किसके भाग्य बहुरेंगे और कौन गर्त में जाएगा, यह तो विधि के लेखे में है लेकिन गुणा-भाग में सभी लग गए हैं। टिकटों से लेकर गठबंधन तक के लिए जोड़-तोड़ व आरोप-प्रत्यारोप का दौर जारी है, साथ ही बाबाओं की भी पौं-बारह हो चली है। पिछले दिनों पर अगर निगाह डालेंगे तो आपको सूबे का सियासी माहौल कुछ ऐसा ही नजर आएगा।
बेहद हंगामेदार रहा अंतिम सत्र
रमन सिंह के तीसरे कार्यकाल का अंतिम सत्र बेहद हंगामेदार रहा। पांच दिन के इस मानसून सत्र की पटकथा भी बेहद रोचक थी और उस पर अमल भी। इसमें हर वह मुद्दे उठे, जो चुनावी हो सकते थे। सरकार ने जहां शिक्षाकर्मियों के संविलियन से बढ़े बोझ से निपटने व नक्सल प्रभावित जिलों के उत्थान आदि के लिए 4800 करोड़ का अनुपूरक बजट पारित किया। वहीं कांग्रेस ने 15 बिंदुओं पर अविश्वास प्रस्ताव लाकर शिक्षा, स्वास्थ्य, कृषि, सिचाई आदि मुद्दों पर सरकार को घेरा। आक्रामक विपक्ष ने चर्चित रिंकू खनूजा आत्महत्या मामले को पहले दिन ही उठाकर माहौल गरम कर दिया था लेकिन सत्तापक्ष ने जोगी के साथ गए कांग्रेसी सदस्यों की सदस्यता जैसे मसले उठाकर उसे उलझा दिया। सदन में संख्याबल न होने के बावजूद अविश्वास प्रस्ताव लाकर कांग्रेस ने वह सारे मुद्दे उठाए, जिसे लेकर वह चुनावी वैतरणी पार करने का मन बना रही है। रमन के इस कार्यकाल में यह तीसरा अविश्वास प्रस्ताव था। जोकि चर्चा के बाद बिना वोटिंग कराए ही समाप्त हो गया।
सवालों के घेरे में बाबाओं की मौजूदगी
इस दौरान विधानसभा परिसर में एक बाबा की मौजूदगी पूरे देश में चर्चा में रही। बाबा का नाम रामलाल कश्यप है। खोजबीन में पता चला कि यह भारतीय जनता युवा मोर्चा के मंडल अध्यक्ष हैं। बाबा ने दावा किया कि उसने विधानसभा को बांध दिया है, रमन फिर लौटेंगे। कांग्रेस ने पलटवार किया कि भाजपा को अब चाउर वाले बाबा (रमन सिंह) पर भरोसा नहीं है, इसलिए इन पर दांव लगाया है। इस पर भाजपा को खूब सफाई देनी पड़ी। लेकिन इसके बाद लोरमी में हुई भाजपा की एक बैठक में कंबल वाले बाबा शरीक हुए। जिनकी भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष धरमलाल कौशिक के साथ फोटो खूब वायरल हुई। प्रदेश के गृहमंत्री रामसेवक पैकरा अपनी शुगर का इलाज कंबल वाले बाबा से कराने के कारण खूब चर्चा में रहे थे। उन्होंने यह बयान देकर और हवा गरम कर दी कि कर्म के अलावा जीवन में तंत्र-मंत्र भी बहुत जरूरी है।
जोगी और मायावती की मुलाकात
इधर सदन में गर्माहट चल रही थी और उधर पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी कर्नाटक का फार्मूला छत्तीसगढ़ में निकालने के लिए मायावती से मिलने दिल्ली पहुंच गए। चर्चा का बाजार गरम हो गया कि जोगी और बहन जी की जुगलबंदी भाजपा और कांग्रेस दोनाें को झटका दे सकती है। हालांकि इस मुलाकात का कोई हल फिलहाल न निकलने वाला था और न ही निकला। गठबंधन की बात दोनों तरफ से खारिज हो गई और मुलाकात औपचारिक करार दे दी गई। लेकिन इस मुलाकात ने कांग्रेसी खेमे में हलचल जरूर मचा दी क्योंकि लोकसभा चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ में सत्ता हासिल करने के लिए कांग्रेस आलाकमान भी बहन जी का साथ मुफीद मान रहा है। अंदरखाने के अनुसार बातचीत जारी भी है, केवल सीटों को लेकर पेंच फंसा है। बसपा जहां अपने जनाधार वाली 15 सीटों से कम पर समझाैता करने को तैयार नहीं है वही कांग्रेस 5-6 से ज्यादा देने को राजी नहीं क्योंकि आगे छोटे-छोटे जनाधार वाले दो-एक दलों को अपने कुनबे में शामिल करने के लिए उसे कुछ और सीटें देनी पड़ सकती हैं।
भाजपा के लिए चुनौती
इनमें भू-राजस्व संहिता, पत्थलगड़ी जैसे मुद्दों को लेकर सरकार से नाराज आदिवासियों के हितों का हवाला देकर चुनाव में ताल ठोंकने के लिए खड़े हुए सर्व आदिवासी समाज को तो वह बिलकुल नजरअंदाज नहीं कर सकती। क्योंकि आदिवासी जिलों में कांग्रेस का ही पलड़ा भारी है और उसमें सेंध कांग्रेस के सत्ता के सपने को तोड़ सकती है। सदन से लेकर सड़क तक विपक्ष के आक्रामक तेवर व अपेक्षाओं की पोटली थामे तमाम संगठनों के बगावती सुर तो भाजपा के लिए चुनौती बने ही हुए हैं वहीं उसके अपनों ने भी मुसीबतें खड़ी कर दी हैं। इधर दस दिनों के भीतर गृहमंत्री रामसेवक पैकरा का भतीजा दुष्कर्म में फंस गया, मंत्री पुन्नूलाल मोहले के रिश्तेदारों ने पुलिसवालों को पीट दिया और एक सांसद के पुत्र ने बुजुर्ग को धुन दिया। विपक्ष भला कहां शांत रहने वाला था, खूब शोर मचा और भाजपा बैकफुट पर चली गई। अंदरूनी बैठकों में इसे गंभीरता से लिया जा रहा है कि वैसे ही चौथी बार लगातार सत्ता हासिल करना बड़ी चुनौती है, उस पर जिम्मेदारों के रिश्तेदारों का यह हाल कहीं जमीन पर न पटक दे।
अब केवल चुनावी जंग
भले ही चुनावी रण के कारण एक-दूसरे के कपड़े उतारने में सभी लगे हों लेकिन अविश्वास प्रस्ताव के बाद सदन का दृश्य बेहद भावुक था। अंतिम सत्र के अंतिम दिन मुख्यमंत्री ने नेता प्रतिपक्ष टीएस सिंहदेव को गले लगाया और उन्ाकी जमकर तारीफ की। पीडब्ल्यूडी मंत्री राजेश मूणत्ा ने पैर छूकर उनका आशीर्वाद लिया। विधानसभा अध्यक्ष गौरीशंकर अग्रवाल के तो बोलते-बोलते आंसू तक बह निकले। सभी सदस्य एक-दूसरे के गले लगे। सभी को यह अंदेशा था कि पता नहीं इनमें से कौन अगली बार यहां होगा या नहीं। इन सबसे इतर इस सत्र में सबसे हमलावर रहे कांग्रेस अध्यक्ष भूपेश बघेल ही केवल चुपचाप निकल लिए। इस स्वस्थ परंपरा के निर्वहन के बाद अब आगे केवल चुनावी जंग है। जिसमें केवल कटाक्ष और कटाक्ष ही होने हैं।