बिहार

अब देश में इंटरनेट में नहीं होगा कोई भेदभाव, सरकार ने नेट न्यूट्रैलिटी पर लगाई मुहर

नई दिल्ली: भारत में नेट न्यूट्रैलिटी को लेकर आखिरकार सरकार ने मुहर लगा दी है. ट्राई ने कुछ समय पहले नेट न्यूट्रैलिटी को लेकर सिफारिश की थी. केंद्र के इस आदेश के बाद इंटरनेट पर किसी भेदभाव की आशंका खत्म हो गई है. फैसला अब मोबाइल ऑपरेटरों, इंटरनेट प्रोवाइडर्स, सोशल मीडिया कंपनियों सब पर लागू होगा. फैसले के बाद कंपनियां अब ऐसा प्लेटफॉर्म भी नहीं बना सकती जहां सिर्फ कुछ वेबसाइट के ही फ्री होने की बात कही गई थी.

दूरसंचार सचिव अरुणा सुंदरराजन ने कहा, ‘‘दूरसंचार आयोग ने ट्राई की सिफारिशों के आधार पर नेट न्यूट्रैलिटी को मंजूरी दे दी. ऐसी संभावना है कि इसमें कुछ महत्वपूर्ण सेवाओं को इसके दायरे से बाहर रखा जा सकता है.’’

क्या है नेट न्यूट्रैलिटी

नेट न्यूट्रैलिटी का मतलब है इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर की ओर से बिना भेदभाव के सभी वेबसाइट पर जाने की आजादी देना. यानी फोन लगने पर आप जिस तरह किसी भी नंबर पर कॉल कर सकते हैं उसी तरह इंटरनेट प्लान लेने पर किसी भी वेब बेस्ड सर्विस तक पहुंच बिना किसी इंटरनेट डेटा भेदभाव के एक्सेस करना. टेलिकॉम कंपनियां इसे खत्म करना चाहती हैं.

क्यों विरोध कर रहीं थीं टेलीकॉम कंपनियां

देश भर लगातार बढ़ रहे स्मार्टफोन नेटवर्क के साथ साथ इंटरनेट एक्सेस भी बढ़ा है. इसी के साथ टेलिकॉम कंपनियों ने इसमें अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने की मांग कर रहीं थीं. आज जो कमाई कॉलिंग-मैसेजिंग एप्स कर रहे हैं, वो उन्हें मिले. इनके कारण उनकी कमाई कम हुई है.

टेलीकॉम कंपनियों का मानना है एसएमएस सेवा को व्हॉट्सएप जैसे लगभग मुफ़्त ऐप ने लगभग मार ही डाला है. नेट न्यूट्रैलिटी का विरोध करने वालीं कंपनियां इसी आधार पर इसका विरोध कर रहीं थीं. अगर टेलिकॉम कंपनियां ऐसा करने में कामयाब होती तो यह बिल्कुल वैसा ही होगा जैसे पेट्रेलियम कंपनियां आपकी गाड़ी के मॉडल के हिसाब से पेट्रोल की अलग-अलग कीमतें वसूलने लगें.

सरकार ने क्या कहा

मीटिंग के दौरान सभी ने कहा कि प्राकृतिक संरचना के मुताबिक आधारिक संरचना ज्यादा जरूरी है. निति आयोग के सीईओ अमिताभ कांत ने कहा कि जिलों के लिए हम डिजिटल संरचना जल्द से जल्द देने की कोशिश कर रहे हैं. वहीं एक अधिकारी ने कहा कि टेलीकॉम कमिशन ने ग्राम पंचायत में करीब 12.5 लाख वाईफाई हॉटस्पॉट को इंस्टॉल करने की मंजूरी दी है जिसके लिए सरकार ने दिसंबर 2018 तक 6,000 रुपये खर्च किए हैं.

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