कैंट बोर्ड: चार साल से चुनाव के इंतजार में अब निष्क्रिय हो गए पार्षद भी
अब निवर्तमान पार्षद क्षेत्र की समस्याओं को नहीं ले रहे गंभीरता से
देहरादून । उत्तराखंड के नौ कैंट बोर्ड के साथ ही देशभर के 56 कैंट बोर्ड का कार्यकाल चार साल पहले अगस्त 2020 में समाप्त हो गया था। चुनाव न होने के कारण क्षेत्र में सक्रिय निवर्तमान पार्षद अब निष्क्रिय हो गए हैं। क्षेत्रों की समस्या को वह अब गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। जिसके चलते क्षेत्रों का काम पब्लिक को खुद कराने के लिए कैंट बोर्ड कार्यालय का चक्कर लगाना पड़ रहा है। निवर्तमान पार्षदों का कहना है कि अगर कैंट बोर्ड को खत्म करना है तो खत्म किया जाए वरना चुनाव कराया जाए।
पिछले कई सालों से देश के समस्त छावनियों को नगर निगम व निकायों में विलय करने की प्रक्रिया चल रही है। इसी वजह से कैंट बोर्डों में चुनाव नहीं हो रहे हैं। बोर्ड का कार्यकाल समाप्त होने के बाद निवर्तमान पार्षदों तथा चुनाव की तैयारी कर रहे नेताओं को लगा था कि चुनाव जल्द होंगे। ऐसे में ये नेता अपने अपने क्षेत्रों में काफी सक्रिय रहे। क्षेत्र की समस्याओं को गंभीरता से लेते हुए समाधान कराने का हर संभव प्रयास भी किया। लेकिन धीरे धीरे इनकी दिलचस्पी भी खत्म होती चली गई। वर्तमान में निवर्तमान पार्षद भी क्षेत्र की समस्या को गंभीरता से नहीं ले रहे हैं। यही वजह है कि अब स्थानीय लोगों को खुद इन कामों के लिए कैंट बोर्ड कार्यालय का चक्कर काटना पड़ रहा है। कैंट बोर्ड रुड़की के कार्यालय अधीक्षक अजय त्यागी ने बताया कि पहले पब्लिक क्षेत्र की समस्या को लेकर कम आती थी। पार्षद ही कार्यालय आते थे। लेकिन कुछ माह से निवर्तमान पार्षदों का पब्लिक से जुड़े कामों को लेकर आना कम हुआ है। अब क्षेत्रवासी वार्डों में काम कराने से कार्य को लेकर यहां आते हैं।
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कैंट बोर्डों को निगम में शामिल किया जाएगा या नहीं इस संबंध में मंत्रालय को पता होगा। चुनाव कब होंगे इसके बारे में अभीतक कोई नोटिफिकेशन नहीं आया है। पब्लिक जो भी समस्या लेकर कार्यालय आती है उसका समाधान किया जा रहा है। विशाल सारस्वत, सीईओ कैंट बोर्ड रुड़की