असदुद्दीन ओवैसी के प्रधानमंत्री मोदी से 7 सवाल, क्या पीएम देंगे जवाब?
नई दिल्ली: ऑल इंडिया मज्लिस ए इतेहदुल मुसलिमीन (एआईएमआईएम) के अध्यक्ष असदुद्दीन ओवैसी ने सदन में अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सात सवाल पूछे. अकसर अपने विवादित बयानों के लिए चर्चा में रहने वाले ओवैसी ने लगभग तीन मिनट में ही अपनी बात कही और कम समय में पूरी बात कहने के लिए सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने उनकी तारीफ भी की. आइए जानें क्या हैं ओवैसी के पीएम मोदी से सात सवाल –
1. मेरा पहला सवाल ये है कि प्रधानमंत्री ने कहा कि मुसलमानों के हाथ में कुरान और कम्प्यूटर देखना चाहता हूं, तो फिर क्या वजह है कि प्री-मैट्रिक और पोस्ट-मैट्रिक के लिए स्कॉलरशिप का जो आवंटन है, वो 2013 से 2018 तक वही है. इसकी वजह क्या है? क्या आप उनके हाथ में कुरान और कम्प्यूटर देखना नहीं चाहते हैं?
2. प्रधानमंत्री का अल्पसंख्यकों के लिए 15 प्वाइंट का प्रोग्राम है. मैं प्रधानमंत्री से जानना चाहता हूं कि ये नियम है कि 15 प्वाइंट एजेंडे के लिए तीन महीने में एक बार कैबिनेट सेकेट्री मीटिंग लेगा. उन्होंने कहा कि इसके बावजूद चार साल में एक मीटिंग नहीं हुईं. क्या ये आपकी मोहब्बत है अल्पसंख्यकों से?
3. 15 प्वाइंट प्रोग्राम का 10वां प्वाइंट ये है कि सरकार पूरी कोशिश करेगी कि अल्पसंख्यकों, जिसमें मुसलमान भी शामिल है, उनको सेंट्रल पैरा मिलिट्री फोर्स, रेलवे, पब्लिक सेक्टर बैंक में रोजगार मिले. मगर मैं आपके जरिए चैलेंज कर रहा हूं एक प्रतिशत रोजगार नहीं मिला.
4. प्रधानमंत्री अपने विदेश दौरों में 1400 करोड़ रुपये खर्च कर चुके हैं. लेकिन उसका नतीजा क्या निकला. श्रीलंका हो, नेपाल हो, मालदीव हो, बांग्लादेश हो, सब चीन की गोद में बैठे हैं.
5. दलितों से मोहब्बत के इतने बड़े बड़े दावे किए जाते हैं. लेकिन जिस जज ने एससी एसटी एक्ट के खिलाफ जजमेंट दिया, आपकी सरकार ने उसे एनजीटी का चेयरमैन बनाया. आखिर क्यों?
6. फिक्स डिपॉजिट पर ब्याज दर छह प्रतिशत है और महंगाई की दर भी छह प्रतिशत है. ये कौन सी पॉलिसी है?
7. कश्मीर की हमारी पॉलिसी क्या है? अगर दो आतंकवादी मरते हैं तो एक हमारा सिपाही मरता है. आप कांग्रेस मुक्त भारत चाहते हैं या मुसलमान दलित मुक्त भारत चाहते हैं. देश में दहशत का माहौल पैदा कर दिया गया है.
इसके बाद ओवैसी ने अपनी बात एक शेर के साथ खत्म की.
तुम कहो शाखों पे फूल खिलने लगे
तुम कहो चाक सीनों के सिलने लगे
इस खुले झूठ को, ज़ेहन की लूट को
मैं नहीं मानता, मैं नहीं जानता
तुमने लूटा है सदियों हमारा सुकून
अब न हमपर चलेगा तुम्हारा फुसूं (जादू)
चारागर (डॉक्टर) दर्दमंदों के बनते हो क्यों
तुम नहीं चारागर कोई माने मगर
मैं नहीं मानता, मैं नहीं जानता
तुम से पहले वो जो इक शख़्स यहाँ तख़्त-नशीं था. उस को भी अपने ख़ुदा होने पे इतना ही यक़ीं था.