क्राइम

एक साल लग गये मासूम छात्र से चोरी का कलंक धुलने में

देहरादून।
दस साल पहले पुलिस की तरफ से लगाए गए चोरी के कलंक को धुलने में एक छात्र को दस साल का समय लग गया। शनिवार को अन्य छह आरोपितों के साथ बरी होने से पहले वह उस कलंक के साथ जीता रहा। इस दौरान खुद पर दर्ज मुकदमे को लेकर उसे काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा। चकराता निवासी उस युवक ने इस दौरान बीएड की पढ़ायी भी काफी मुश्किल से पूरी की।
पुलिस ने जब उसे गिरफ्तार किया तो उत्तराखंड के जौनसार बावर क्षेत्र से आने वाला छात्र अनुसूचित जनजाति के हास्टल में रहता था। चोरी के सामान के साथ गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने उसे जेल भेज दिया था। उसे खुद को बेकसूर साबित करने में 1 साल का समय लग गया। उक्त छात्र विरेंद्र पुत्र लुग्गा निवासी गणता चकराता के वकील पृथ्वी सिंह नेगी ने बताया पुलिस जिनको चोरी के सामान के साथ गिरफ्ताकर किये जाने को बतौर गवाह कोर्ट में पेश किया वे सभी मुकर गये। इसके बाद पुलिस की कहानी झूठी साबित हुयी और मासूम छात्र बरी हो गया। 1 साल पुराने मुकदमे में पुलिस ने 1 को गिरफ्तार किया था। तीन को काफी पहले सजा मिल गयी थी तथा इस मामले में आरोपित बनाये गये सुनार समेत सात को कोर्ट ने बरी कर दिया। छात्र के वकील पृथ्वी सिंह नेगी ने बताया पुलिस ने इस मामले में जानबूझकर झूठी कहानी बनाई। थाना डालनवाला क्षेत्र के मोहनी रोड में हुई चोरी के बाद पुलिस ने 1 को गिरफ्तार किया था। पुलिस ने बताया कि चोरी करने वालों ने एक दूसरे को सामान बेचते हुए गैंग बनाकर घटना को अंजाम दिया, जबकि सच्चाई कुछ और थी। बचाव पक्ष के वकील ने बताया कि इस मामले में चोरी के बाद पुलिस कहानी में कुछ झूठ तथा कुछ सच था। वकील ने चोरी के आरोप में गिरफ्तार नौकर, चौकीदार तथा उसके सहयोगी के बारे में कोर्ट में कुछ नहीं कहा। उन तीनों को सजा हो गयी तथा अन्य सात बरी हुये। 1 सालों तक चली सुनवाई के दौरान पुलिस इस मामले में ऐसा कोई तथ्य अदालत के समक्ष पेश नहीं कर पायी जिससे डीएवी के छात्र, सुनार तथा अन्य की चोरी में संलिप्तता साबित हो सके। वकील ने बताया कि पुलिस अपनी कहानी को सच साबित करने के लिए हमेशा झूठी कहानी गढ़ती रहती है। इसी तरह की झूठी कहानी का शिकार उनका मुवक्किल हुआ।

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