बिहार

एक बार किसी के अंदर प्राण आ गया तो उसे आप मार नहीं सकते – स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद

खबरीलाल रिपोर्ट (वृंदावन) : ज्योतिष एवं द्वारका शारदा पीठ के पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द जी सरस्वती का 68 वां चातुर्मास्य व्रत अनुष्ठान वृंदावन धाम स्थित श्रीउड़िया बाबा आश्रम में आयोजित है जिसमे प्रतिदिन रासलीला, वेदांत अध्यन एवं सत्संग नियमित हो रहे हैं और इस सत्संग में संत, महात्मा अपने श्रीमुख से प्रवचन का रस पान कराते हैं जिसमे सैंकड़ो श्रद्धालुगण उपस्थित होकर पूज्य शंकराचार्य महाराज एवं अन्य संत, महात्माओं द्वारा दिये गए प्रवचनों को सुनकर अपने मन के संशय को दूर करते हैं।

इसी कड़ी में आज शंकराचार्य महाराज के शिष्य प्रतिनिधि परम् पूज्य दंडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने अपने प्रवचन में देवताओं के ऊपर हो रहे अत्याचार ( काशी में मंदिर तोड़े गए ) पर अपनी बात रखते हुए कहा की यदि 3 दिनों तक लगातार किसी मूर्ति या पत्थर की रोजाना पूजा अर्चना किया जाए, स्नान कराया जाए और भोग लगाया जाए तो शास्त्र अनुसार उस मूर्ति या पत्थर में प्राण आ जाते हैं । एक बार किसी मे प्राण आ जाये तो उसे हम मार नहीं सकते। व्यवहारिक दृष्टि की यदि बात करें तो वैध संतान और अवैध संतान होते हैं। जो संतान पाणिग्रहण के पश्चात उत्पन्न होता है वह वैध संतान कहलाता है पर जो संतान कामाचार्य से उत्पन्न होता है उसे हम अवैध कहते हैं जब कि संतान अवैध नहीं होता हैं बल्कि जो पुरुष और स्त्री अवैध रूप से कामाचार्य किये हैं बिना पाणिग्रहण के वह अवैध है। लेकिन अवैध संपर्क के कारण जो संतान पृथ्वी पर आया है क्या धर्म शास्त्र और भारत का संविधान उसे मारने की अनुमति देता है ? नहीं देता है , बल्कि उस संतान के लिए सरकार अनाथालय में व्यवस्था करती है जिससे कि उसका भरण पोषण हो सके। एक बार किसी के अंदर प्राण आ गया तो उसे आप कदापि मार नहीं सकते। आप बताइए वैध और अवैध का क्या मानक है ?

काशी खंड में जिन मन्दिरों का उल्लेख किया गया है वह स्कन्द पुराण का अंग है और स्कन्द पुराण वैस जी द्वारा लिखा गया है जो हजार वर्ष पहले का लिखा हुआ है । यदि व्यक्ति इतिहासकार की दृष्टि से भी देखे तो वो 1000 वर्ष पहले की है। हजार साल पहले भारत मे कहाँ संविधान था वह तो 70-71 साल से लागू हुआ है। उससे पहले अंग्रेज थे, मुग़ल साम्राज्य था। उस समय शस्त्रीय संविधान लागू था, वेद मंत्रों से राजा बनाया जाता था, उनके मंत्री ब्राह्मण होते थे और विद्ववत परिषद होता था। ऐसा कोई अवसर आता था तो विद्वानों की परिषद निर्णय देती थी और उसे ही समाज स्वीकार करता था।

पुराने समय में पट्टा आदि शुरू ही नहीं हुए थे और लोगों को जहां जगह मिली वहीं बस गया और वहीं आबादी बस गई। देश स्वतंत्र होने के बाद जो जहां बसा था उसे सरकार ने पट्टा दे दिया। जो जहां बैठ गया उसी को देखकर नक्शा बनाया गया। जो पहले आके बैठ गया उस स्थान पर उसका अधिकार है। जब भगवान वहां पहले से बैठे हैं , उन्हें किस कानून से वहां से हटा रहे हो और कैसे वे अवैध हैं यह भी बताओ ? जो मंदिर काशी में हैं वे पहले से वहां हैं इसलिए वह अवैध नहीं हो सकता। वो भगवान का जगह है और मनुष्य को उन्हें हटाने का कोई अधिकार ही नहीं है। 

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