भारतीय ओलंपिक संघ (आईओए) के अध्यक्ष एन रामचंद्रन ने पिछले महीने पत्रकारों से कहा था कि आईओए ने 2032 ओलंपिक्स और 2030 एशियाई खेलों की नीलामी में हिस्सा लेने के लिए सरकार से इजाजत मांगी है। खेल मंत्रालय का ये कदम बताता है कि ये खराब आईडिया नहीं है, लेकिन वो नीलामी में शामिल होने वाले खर्चे और सबूतों पर ध्यान देगी कि इससे मेजबान देश को फायदा होगा या नहीं।
जहां गेम्स की मेजबानी हासिल करना महत्वकांक्षी उद्देश्य है, जो संसाधनों के मामले में देश को मजबूत बनाता है और देश को खेल महाशक्ति बनाने के इरादे से भारत के पास अभी समय है। अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) साल 2025 में 2032 ओलंपिक्स के मेजबान की घोषणा करेगा। मगर इवेंट की नीलामी और उम्मीद्वार प्रक्रिया की शुरुआत 9 साल पहले शुरू हो जाएगी। ऐसे में सरकार को योजना बनाने के लिए कुछ और समय मिल जाएगा।
मौजूदा स्थिति दो साल पहले से सुखद है जब भारत ने 2024 गेम्स के लिए नीलामी में हिस्सा लेने का मन नहीं बनाया था। उस समय तत्कालीन प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने विशेष तौर पर आईओसी अध्यक्ष थॉमस बाख को आमंत्रित किया था। वैश्विक स्तर पर, आईओसी अभी मुश्किल दौर से गुजर रहा है क्योंकि खर्चों को देखते हुए अधिकांश शहर मेजबानी करने से बचना चाह रहे हैं।
खेल मंत्रालय इससे अनजान नहीं है कि भारत खेल महाशक्ति नहीं है। एक सूत्र ने टाइम्स ऑफ इंडिया से कहा, ‘किसी देश ने ओलंपिक्स की मेजबानी सिर्फ खेल कार्यक्रम को सोचकर नहीं की। जब टोक्यो ने 1964 की मेजबानी की, तब उनका मकसद विश्व युद्धों के बाद अपनी स्थिति सुधारने का था। 1948 में लंदन ने भी किसी खास उद्देश्य से मेजबानी की थी। हमें भी ऐसा कदम लेने के लिए अपनी योजनाओं पर ध्यान देना होगा।’
एक सूत्र ने कहा, ‘मौजूदा समय में हमारा ध्यान खेलों की मेजबानी करने के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं पर लगा हुआ है। हम समझना चाहते हैं कि भविष्य के बारे में फैसला लेने से पहले ये देखले कि देश की स्थिति अभी क्या है। सभी पहलुओं पर गौर करने के बाद हम खुद से सवाल करेंगे कि क्या वाकई इस समय ओलंपिक्स की मेजबानी करने की नीलामी में हिस्सा लेना सही फैसला होगा।’