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महिलाओं की चोटी कटने के पीछे कहीं ये तो नहीं है असली वजह
नई दिल्ली। महिलाओं की चोटी कटने की घटना को लेकर रोजाना नई कहानियां सामने आ रही हैं। इन मामलों में गौर करने वाली बात ये है कि जिन महिलाओं के साथ ये घटनाएं हो रही हैं वो या तो अकेले में होती हैं या फिर बंद कमरों में।
इस बारे में इंडियन रेशनलिस्ट एसोसिएशन (आईआरए) के राष्ट्रीय अध्यक्ष सनल इदामरूकूू का कहना है कि भारत में ये कोई पहली घटना नहीं है। इसके पहले 2001 में दिल्ली में ही काला बंदर का आतंक फैला हुआ था। लोग अपने शरीर पर बंदर का घाव तक दिखाते थे।
असल में यह मास हिस्टीरिया का मामला है, जिसमें उपेक्षित या कमजोर लोगों के अंदर तनाव का स्तर इतना बढ़ जाता है कि वो इससे मुक्ति पाने के लिए इस तरह की चीजें करने लगते हैं। चोटी कटने की घटनाएं ग्रामीण या पिछड़े इलाके की महिलाओं के साथ ही हो रही हैं।
इसका बड़ा कारण है कि हमारे समाज में महिलाएं उपेक्षित और प्राय: शोषण का शिकार होती हैं। असल में यह साइकोलॉजिकल ट्रांस है, जिसमें मनुष्य ऐसी मानसिक स्थिति में पहुंच जाता है जहां से बचने के लिए वो ऐसी चीजें करने लगता है। मानसिक दबाव बहुत अधिक होने के कारण ही व्यक्ति बहोश हो जाता है और जब होश में आता है तो किसी दूसरे के हमले या बाल काट ले जाने की बात करने लगता है।
गौर करने वाली बातें
-चोटी कटने की घटना का शिकार होने वाली ज्यादातर महिलाएं या तो अकेले थीं या बंद कमरों में थीं जहां किसी बाहरी व्यक्ति का आना प्राय: संभव नहीं था।
-आमतौर पर सभी महिलाओं की चोटी कटने की घटना से पहले उनके सिर में तेज दर्द और बेहोशी की भी बात सामने आई है।
-एक को छोड़ दें तो महिलाओं ने बाल काटते हुए किसी को देखा नहीं है। जो तीन लोग गिरफ्तार हुए हैं उनकी भूमिका भी संदिग्ध है।
-चोटी काटने की घटनाएं प्राय: ग्रामीण या कम पढ़ी लिखी महिलाओं के साथ ही हो रही हैं।
-चोटी काटने की घटनाएं प्राय: ग्रामीण या कम पढ़ी लिखी महिलाओं के साथ ही हो रही हैं।