देशभक्त कश्मीरियों से क्यों डरते हैं आतंकवादी?
चीन में भ्रष्टाचार के खिलाफ जिस तरह आम लोग मिलकर एक हो गए हैं, वैसे ही जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों के खिलाफ जनता को इक्कठा होना होगा. क्योंकि जब तक कश्मीर की जनता आतंकवादियों के ख़िलाफ़ आवाज़ नहीं उठाएगी, तब तक आंतकवादी… खून खराबा करते रहेंगे. और सरकारें तमाशा देखती रहेंगी. आज जम्मू कश्मीर में एक और कश्मीरी देशभक्त शहीद हो गया. आतंकवादियों ने गुरुवार को जम्मू कश्मीर के शोपियां ज़िले से पुलिस के एक कॉन्सटेबल को अगवा कर लिया था. इस कॉन्सटेबल का नाम जावेद अहमद डार था. आज सुबह जावेद का शव शोपियां के पड़ोसी ज़िले कुलगाम में मिला.
जावेद शोपियां के SSP शैलेन्द्र मिश्रा के PSO थे, और आतंकवादियों के खिलाफ हुई कई मुठभेड़ों में शामिल रहे थे. मई में जब सुरक्षाबलों ने हिज़्बुल मुजाहिद्दीन के आंतकवादी सद्दाम पेड्डर को मारा था, तो उस एनकाउंटर में जावेद अहमद डार भी शामिल थे. जावेद अहमद डार एक सच्चे देशभक्त थे. आज जब उनका शव उनके गांव में पहुंचा, तो हर शख्स की आंखें नम थीं. आतंकवादियों और अलगाववादियों की तो कोई संवेदना नहीं होती, लेकिन क्या देश की सरकारों की संवेदनाएं भी मर चुकी हैं. हमारा दावा है कि शहीद जावेद अहमद डार के घरवालों का दुख और दर्द आज रात आपको सोने नहीं देगा. लेकिन अफसोस इस बात का है कि जम्मू कश्मीर के बहादुर और देशभक्त सुरक्षाकर्मियों का ये दर्द हमारे नेताओं को महसूस नहीं होता.
आतंकवादी ये संदेश दे रहे हैं कि जो कश्मीरी, देश का साथ देगा, वो मारा जाएगा. फिर चाहे वो राष्ट्रीय रायफल्स के रायफलमैन औरंगज़ेब हों या फिर जम्मू-कश्मीर पुलिस के कॉन्सटेबल जावेद अहमद डार. पिछले महीने 14 जून को औरंगज़ेब ख़ान ईद मनाने के लिए अपने घर जा रहे थे, तो शोपियां में ही आतंकवादियों ने उनका अपहरण कर लिया था. और फिर रात में पुलवामा से उनका शव बरामद हुआ था.
औरंगज़ेब ख़ान, लेफ्टिनेंट उमर फैयाज़, SHO फिरोज़ अहमद डार, DSP अयूब पंडित और अब जावेद अहमद डार. पिछले एक वर्ष से आतंकवादी जम्मू कश्मीर में लगातार सुरक्षाबलों को चुनौती दे रहे हैं. इन देशभक्त कश्मीरियों की हत्या करके आतंकवादी ये साबित कर रह रहे हैं कि वो किसी एजेंडे, आदर्श, मकसद या विचारधारा की लड़ाई नहीं लड़ रहे हैं. वो अपनी बातें मनवाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं.जावेद अहमद डार आतंकवादियों की तरह डरपोक नहीं थे, बल्कि वो जम्मू कश्मीर पुलिस के एक बहादुर जवान थे. उन्हें तिरंगे और भारत की अखंडता पर विश्वास था. इसलिए आज आपको भी उनका सम्मान करना चाहिए और उन्हें श्रद्धांजलि देनी चाहिए.
सवाल ये है कि क्या कश्मीर को लेकर सरकारी की नीति में कोई Confusion है. अब तो बीजेपी के पास गठबंधन की भी कोई मजबूरी नहीं है. कश्मीर में राज्यपाल शासन चल रहा है. हमें लगता है कि सरकार को जल्द से जल्द कश्मीर में आतंकवादियों के खिलाफ अपनी रणनीति में बदलाव करना पड़ेगा. और कोई निर्णायक कदम उठाना पड़ेगा. देश के कंधे अब शहीदों के शव नहीं उठा सकते.
कश्मीर में वहाबी विचारधारा हावी हो रही है. और इसी विचारधारा की वजह से दहशतगर्दी बढ़ रही है. एक ज़माने में कश्मीर के लोग सूफीवाद के मुरीद हुआ करते थे, लेकिन अब माहौल में वहाबी ज़हर को घोलकर सूफ़ीवाद यानी Sufism को खत्म किया जा रहा है. और ये सब पाकिस्तान के पैसों से हो रहा है. हमारे इस खुलासे के बाद बहुत हंगामा हुआ था. तब पाकिस्तान की गुलामी करने वाले अलगाववादियों पर भी बहुत से Case दर्ज हुए थे. उनकी जांच हुई थी. हमने इस रिपोर्ट में अशरफ नाम के एक मौलवी के बयान आपको सुनवाए थे. अशरफ़ कश्मीर के सूफी संत हैं और वहां वहाबी विचारधारा की जगह सूफीवाद को बढ़ावा दे रहे हैं. आज आतंकवादियों ने उन्हें गोली मार दी है. इस फायरिंग में मौलवी अशरफ बुरी तरह घायल हो गए हैं.
सबसे पहले आप मौलवी अशरफ के विचार सुनिये और समझिए कि जम्मू कश्मीर में आतंकवादियों को शांति और सौहार्द की बात करने वाले लोग पंसद क्यों नहीं आते.
मौलवी अशरफ के ये विचार आज से दो वर्ष पहले के हैं. वो पुलवामा की हनफिया मस्जिद के इमाम हैं. उनका पूरा नाम है मोहम्मद अशरफ ठोकर. वो एक देशभक्त कश्मीरी हैं और आतंकवाद के खिलाफ वो अपनी आवाज़ उठाते रहे हैं. वो कश्मीर के युवाओं के लिए आतंकवाद के नहीं, बल्कि शिक्षा चाहते हैं. और पिछले कुछ वक्त अपने इलाके में एक हायर सेकेंडरी स्कूल की मांग कर रहे थे. कश्मीर में जुमे की नमाज़ के बाद आपने पत्थरबाज़ी की बहुत सी तस्वीरें देखी होंगी और आज़ादी वाले नारे भी सुने होंगे, लेकिन स्कूल की मांग को लेकर हुई नारेबाज़ी आपने नहीं सुनी होगी. मौलवी अशरफ की अगुवाई में छात्रों ने पुलवामा में एक आंदोलन छेड़ा हुआ है.
मौलवी अशरफ पर हुआ ये हमला बताता है कि आतंकवादी कश्मीर युवाओं के हाथ में कलम नहीं बल्कि बंदूक थमाना चाहते हैं.