वेदांत श्रवण से अज्ञानता की निवृत्ति होती है : स्वरूपानन्द सरस्वती
खबरीलाल रिपोर्ट ::- वृंदावन के पवित्र धरती पर उड़िया बाबा आश्रम में आयोजित जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती महाराज के 68 तम चातुर्मास्य के द्वितीय दिवस पर पंचदसि वेदांत का स्वाध्याय हुआ जिसमें प्रमुख रूप से पूज्य महाराजश्री के शिष्य प्रतिनिधि दंडी स्वामी सदानंद जी सरस्वती, दंडी स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती, स्वामी अमृतानंद जी सरस्वती
ब्रह्मचारी सुबुद्धानंद जी महाराज, विश्व कल्याण आश्रम, झारखंड के ब्रह्मचारी कैवल्यानन्द जी महाराज, ब्रह्मचारी ब्रह्मविद्यानंद जी महाराज व शिष्य एवं भक्तगण उपस्थित थे।
पूज्य शंकराचार्य जी महाराज ने पचंदसि वेदांत स्वाध्याय के प्रारम्भ में कहा की ज्ञान प्रदाता गुरु अपने शिष्य एवं भक्तों के अज्ञान रूपी अंधकार को ज्ञान रूपी प्रकाश से दूर करते हैं। आगे उन्होंने कहा कि महा मोह माने अनादि अज्ञानता है और इस मोह में मनुष्य डूबा हुआ है। यदि मनुष्य वेदांत का श्रवण करता है तो अपनी अज्ञानता दूर कर सकता है। आगे महाराजश्री ने बताया कि सुख हमारी स्वाभाविक इच्छा होती है तथा उसी तरह प्यार भी स्वाभाविक इच्छा है। मनुष्य को जहां प्यार मिलता है वह वहीं जाता है।
मनुष्य की चाहत होती है कि उन्हें दुःख कभी न हो और उन्हें अनंत सुख चाहिए और यह ही परम पुरुषार्थ है। यह तब होगा जब प्रभु से साक्षात्कर होगा। प्रभु से साक्षात्कर के लिए पहले व्यक्ति को धर्म के पथ पर चलना होगा, हृदय के निर्मल होना है, किसी भी प्रकार के संशय में नही पढ़ना है, हमेशा प्रसन्न रहना है, मन मे किसी भी तरह के ईर्ष्या द्वेष नहीं रखना है आदि से जब परम् शांति का अनुभव हो तो ईश्वर की प्राप्ति होती है। जो व्यक्ति अपनी ही प्रसंशा करे , अपनी ही बढ़ाई करे वह जुगनू की तरह होता है। कभी भी दम्भ, घमंड नहीं करना चाहिए। माया से ही झूट और अधर्म की उत्पत्ति होती है। दम्भ बहुत घातक होता है, इससे क्रोध, ईर्ष्या आदि उत्पन्न होते हैं और यह बढ़ता ही चला जाता है।