उत्तराखण्ड

वैज्ञानिकों ने खोला राज!

देहरादून: करीब आठ हजार साल पुरानी सिंधु घाटी की सभ्यता अपने चरम पर पहुंचने के बाद आज से चार हजार से 2900 साल के बीच विलुप्त हो गई थी। इसके विलुप्त होने का एक बड़ा कारण बना बेहद कमजोर मानसून। वैज्ञानिकों के दावे को सच मानें तो उस दौर में करीब 1100 साल की अवधि में ऐसा सूखा पड़ा कि लोगों का जीवनयापन मुश्किल हो गया, क्योंकि तब तक कृषि और पशुपालन जीवनयापन का जरिया बन चुका था। सूखे में इन सबकी उम्मीद भी नहीं की जा सकती।

सिंधु घाटी की सभ्यता के दौरान पड़े भयंकर सूखे का खुलासा वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान के शोध में किया गया है। संस्थान में आयोजित नेशनल जियो-रिसर्च स्कॉलर्स मीट में संस्थान के निदेशक प्रो. एके गुप्ता ने इस शोध का प्रस्तुतीकरण किया।

संस्थान के शोध में होलोसीन अवधि (आज से 10 हजार पहले तक) में मानसून की स्थिति का पता लगाया गया। इसके लिए वैज्ञानिकों ने लद्दाख स्थित सो मोरिरि झील की सतह पर पांच मीटर ड्रिल किया और अवसाद के 2000 सैंपल लिए।

सबसे पहले कार्बन डेटिंग से अवसाद की उम्र निकाली गई और फिर देखा कि अवसाद में चिकनी मिट्टी अधिक है या बालू। पता चला कि आज से 4000 से 2900 साल पहले की अवधि के अवसाद में चिकनी मिट्टी की मात्रा अधिक है। दरअसल, बालू अधिक हल्की होती है और वह कम पानी में भी आसानी से बहकर आ जाती है। जबकि बालू को बहाकर लाने के लिए बारिश भारी मात्रा में होनी जरूरी है।

वहीं, होलोसीन अवधि में आज से 10 हजार पहले से सात हजार वर्ष की अवधि के अवसाद में बालू की मात्रा अधिक पाई गई। इससे वैज्ञानिकों ने निष्कर्ष निकाला कि उस समय मानसून जबरदस्त था। इस अवधि में अस्तित्व में रहे काल को रामायणकाल के नाम से भी जाना जाता है।

2070 साल पहले फिर मजबूत हुआ मानसून

नेशनल जियो-रिसर्च स्कॉलर्स मीट में प्रस्तुत एक अन्य शोध में बताया गया कि देश के मानसून ने आज से 2070 साल पहले से लेकर 1510 साल के बीच की अवधि में फिर जोर पकड़ा। यह बात हिमाचल प्रदेश के मंडी में स्थित रिवालसर झील के अवसाद के अध्ययन में पता चली।

संस्थान की शोधार्थी श्वेता सिंह के मुताबिक अवसाद के अध्ययन के लिए झील में 15 मीटर की गहराई में ड्रिल किया गया और 1500 सैंपल एकत्रित किए गए। इससे अवसाद की अवधि पता लगाने के साथ ही यह बात सामने आई कि अवसाद में बालू की मात्रा अधिक पाई गई। यानी इस अवधि में मानसून मजबूत स्थिति में था। इसे और पुख्ता करने के लिए आइसोटोपिक (समस्थानिक) अध्ययन भी किया गया।

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