बिहार

क्या सच में इस रुप में ली भगवान शिव ने माता पार्वती की परीक्षा

मां पार्वती भगवान शिव को अपने पति रुप में पाने के लिए घोर तप कर रहीं थीं। उनकी तपस्या को देखकर भगवान ने उनकी परीक्षा लेने का सोचा। उन्होंने पार्वती जी की परीक्षा लेने सप्तर्षियों को भेजा। मां गौरी के सामने सप्तर्षियों ने शिव जी के अवगुण बताएं लेकिन माता ने कहा कि वह शिव से ही विवाह करेंगी।

एक बार भगवान शिव ने ही माता की परीक्षा लेने का सोचा। जहां माता तपस्या कर रही थी, वहां भगवान प्रकट हुए और उनको वरदान दे कर चले गए। तभी अचानक पास के तालाब में एक मगरमच्छ इस बच्चे को ले जा रहा था। मां पार्वती से उस बच्चे की दर्द भरी पुकार सुनी न गई और उसे बचाने चली गई।

लड़के ने माना को देखकर कहा- “मेरी न तो मां है न बाप, न कोई मित्र। माता आप मेरी रक्षा करें।”

पार्वती जी ने कहा- “हे ग्राह ! इस लडके को छोड़ दो।” मगरमच्छ बोला- “दिन के छठे पहर में जो मुझे मिलता है, उसे अपना आहार समझ कर स्वीकार करना, मेरा नियम है।”

पार्वती जी ने विनती की- “तुम इसे छोड़ दो। बदले में तुम्हें जो चाहिए वह मुझसे कहो।”

मगरमच्छ बोला- “एक ही शर्त पर मैं इसे छोड़ सकता हूं। आपने तप करके महादेव से जो वरदान लिया, यदि उस तप का फल मुझे दे दोगी तो मैं इसे छोड़ दूंगा।”

माता ने उस मगर की बात स्वीकार कर ली।

मगरमच्छ ने समझाया- “सोच लो देवी, जोश में आकर संकल्प मत करो। हजारों वर्षों तक जैसा तप किया है वह देवताओं के लिए भी संभव नहीं।”

पार्वती जी ने कहा- “मेरा निश्चय पक्का है। मैं तुम्हें अपने तप का फल देती हूं। तुम इसका जीवन दे दो।”

मगरमच्छ ने देवी से तपदान करने का संकल्प करवाया और उसके बाद मगरमच्छ का देह तेज से चमकने लगा। मगर बोला- “हे पार्वती, देखो तप के प्रभाव से मैं तेजस्वी बन गया हूं। तुमने जीवन भर की पूंजी एक बच्चे के लिए व्यर्थ कर दी। चाहो तो अपनी भूल सुधारने का एक मौका और दे सकता हूं।”

पार्वती जी ने कहा- “हे ग्राह ! तप तो मैं पुन: कर सकती हूं, किंतु यदि तुम इस लड़के को निगल जाते तो क्या इसका जीवन वापिस मिल जाता ?”

कुछ समय बाद देखते ही देखते वह लड़का अदृश्य हो गया और मगरमच्छ लुप्त हो गया और माता पुन: तप करने का संकल्प लिया। इतने में भगवान सदाशिव प्रकट होकर बोले- “देवी, भला अब क्यों तप कर रही हो?”

पार्वती जी ने भगवान को सारा वृतांत सुनाया। इस पर भोलेनाथ ने कहा- “तुम्हारी परीक्षा लेने के लिए मैंने ही यह लीला रची थी। अनेक रूपों में दिखने वाला मैं एक ही एक हूं। मैं अनेक शरीरों में, शरीरों से अलग निर्विकार हूं। तुमने अपना तप मुझे ही दिया है इसलिए अब और तप करने की जरूरत नहीं।”

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