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इनकी शहादत पर रोया था पूरा देश, पहली सैलरी भी नहीं ले पाए थे कैप्टन कालिया

कारगिल विजय दिवस हर साल 26 जुलाई को युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए शहीद जवानों के सम्मान के रूप में मनाया जाता है। 60 दिन तक चलने वाले कारगिल युद्ध में 527 सैनिक शहीद हुए थे जबकि 1300 से ज्यादा घायल हुए थे। मई में शुरू हुए इस युद्ध का अंत 26 जुलाई 1999 में हुआ था। भारतीय सेना ने अपने अदम्य साहस से पाकिस्तान की सेना को घुटने टेकने के लिए मजबूर कर दिया था। हमारे शहीद हुए जवानों में कैप्टन सौरभ कालिया का नाम बड़े ही गर्व के साथ लिया जाता है। कैप्टन कालिया और उनके पांच साथी-नरेश सिंह, भीखा राम, बनवारी लाल, मूला राम और अर्जुन राम सभी काकसर की बजरंग पोस्ट पर गश्त लगा रहे थे कि दुश्मनों ने इनको अपना बंदी बना लिया और करीब 22 दिनों तक इन्हें जबरदस्त यातनाएं दी गईं। 29 जून, 1976 को अमृतसर में जन्मे सौरभ कालिया तब 23 साल के थे जब उनका दुश्मनों से सामना हुआ।

पहली सैलरी भी नहीं ले पाए कैप्टन कालिया
कैप्टन कालिया को फौज में भर्ती हुए महज एक महीना ही हुआ था जब पाकिस्तानी घुसपैठियों ने उन्हें धोखे से दबोच लिया। वे अपना पहला वेतन भी नहीं ले पाए थे।

कैप्टन कालिया को दी गईं अमानवीय यातनाएं
तीन हफ्ते बाद उनका शव क्षत-विक्षत हालत में मिला था। उनकी पहचान करना भी तब मुश्किल हो गया था। शहीद सौरभ कालिया के साथ अर्जुन राम भी था, उनकी उम्र तब महज 18 साल थी। दुश्मनों अमानवीय यातनाएं देकर कैप्टन सौरभ से भारतीय सेना की खूफिया जानकारी जाननी चाही लेकिन उन्होंने एक शब्द नहीं कहा। शहीद कालिया का शव देखकर सभी के मुंह से चीख निकल गई थी। 22 दिन तक असीम यातनाओं के कारण उन्होंने मौत को गले लगा लिया। कैप्टन सौरभ कालिया जैसे नायक सदियों में एक बार जन्म लेते हैं, उनको अदम्य साहस और वीरता को देश आज भी नमन करता है। पालमपुर के आईमा स्थित निवास में उनके परिजनों ने सौरभ से जुड़ी हर वस्तु आज भी सहेज कर रखी है।

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