बिहार

सफेद झूठ बोलने वाले अधिकारी तोड़ रहे देवताओं भक्तों की कुटिया, डुबाएंगे शासन की लुटिया : अविमुक्तेश्वरानन्दः

खबरीलाल रिपोर्ट  (काशी) : झूठ ही लेना झूठ ही देना। झूठ ही भोजन झूठ चबैना वाली कहावत इन दिनों काशी में चरितार्थ हो रही है । जहाँ सिर्फ और सिर्फ झूठ का ही बोलबाला है । अनेक अनेक मन्दिर और सैंकड़ों मूर्तियां तोडकर फेंक दी गयी और प्रचार यह कर रहे हैं कि कोई भी मन्दिर नहीं तोड़ा गया ।

टूटी मूर्तियाँ बिखरी पडी रहीं पर पूछने पर यह कहा गया कि जो लोग यह कह रहे हैं ” वे भ्रम फैला रहे हैं ” ।

हद तो तब हो गयी जब आज के अखबारों में काशी विश्वनाथ मन्दिर के सी.ई.ओ ने सफेद झूठ का प्रयोग धड़ल्ले से किया।  उन्होंने आरोप लगाया कि कल जब वे मन्दिर बचाओ आंदोलनम् के तीसरे चरण में 12 दिनी उपवास @ पराक व्रत पर बैठे स्वामिश्रीः अविमुक्तेश्वरानन्दः सरस्वती के पास गये तो “असंसदीय भाषा” का प्रयोग किया गया जिसके कारण वे वार्ता बीच में छोडकर चले गये । यह भी कहा कि “लोग कैमरे से बातचीत की रिकार्डिंग कर रहे थे । रोकने पर भी नहीं माने । इसलिए उठकर चला आया ।” सीईओ का अक्षरशः बयान निम्न है :-

8 जुलाई 2018 के हिन्दुस्तान दैनिक के पृष्ठ 3 के तीसरे कालम में छपे शीर्षक “सी.ई.ओ ने बताया कि क्यों चले आए” में विशाल सिंह के हवाले से यह कहा गया है कि – वे हम लोगों की बात रिकार्ड करने लगे । मैंने मना किया, पर वे नहीं माने।  फिर भी मैं बात करता रहा।

अमर उजाला अपना शहर वाराणसी पृष्ठ  2 के अन्तिम  शीर्षक “वार्ता अधूरी छोड चले गये सी.ई.ओ” में भी विशाल सिंह का कहना है कि – वार्ता के दौरान असंसदीय भाषा के इस्तेमाल होने के कारण वह चले आए ।”

अमर उजाला के वाराणसी सिटी पृष्ठ 2 पर छपा है कि “वार्ता के दौरान शासन प्रशासन के प्रति असंसदीय भाषा के इस्तेमाल होने के कारण हम मौके से वापस चले आए।”

उक्त दोनों ही आरोप सम्पूर्ण रूप से सफेद झूठ हैं।  विशाल सिंह  के उपवास स्थल पर आने से लेकर उनके तैश में उठकर जाने तक के वीडियो, ऑडियो क्लिप आन्दोलनम् के पास विद्यमान है जिन्हें देखा और सुना जा सकता है । 

प्रश्न यही है कि यदि कोई जिम्मेदार अधिकारी अखबारों के माध्यम से जनता के समक्ष सफेद झूठ बोल सकता है तो निश्चित रूप से वह अधिकारी शासन-प्रशासन को भी झूठी रिपोर्ट भेज सकते हैं। क्या जनता के सामने सफेद झूठ बोलना और प्रशासन को झूठी रिपोर्ट भेजना मात्र ऐसे कारण नहीं है जिनसे वह पद के अयोग्य सिद्ध हो सके ?

यह भी ध्यातव्य है कि किसी आन्दोलनकारी से यदि कोई अधिकारी वार्ता करने आता है और यदि प्रेस वाले या जागरूक जनता उस बात को रिकार्ड करने लगते हैं तो इसमें हर्ज क्या है ? क्या विशाल सिंह कोई ऐसी बात करने आए थे जो छिपाने लायक थी ? तो उन्हें जनता को बताना चाहिए कि वह कौन सी बात थी जिसे वे सबके सामने कहने में संकोच कर रहे थे या क्या वे हमको कोई लोभ या धमकी देना चाहते थे ? या एकान्त में कोई अप्रिय घटना घटित करने का उनका उद्देश्य था ?

निश्चित रूप से काशी में ऐसे अधिकारी रहेंगे तो देवताओं और भक्तों की कुटिया ही नहीं टूटेगी, प्रशासन की लुटिया भी डूबनी तय है ।

हम यह स्पष्ट कहना चाहते हैं कि या तो विशाल सिंह अपने इस झूठ के लिए सार्वजनिक रूप से क्षमा याचना करें अन्यथा कल दोपहर को हम उनको लीगल नोटिस भेजेंगे और सरकार से यह मांग करेंगे कि ऐसे अधिकारी को 7 दिन के भीतर बर्खास्त करे।

द वायर अखबार को दिए गये साक्षात्कार (प्रकाशित 15 मई 2018) में विशाल सिंह ने कहा है कि – मैं नास्तिक हूँ । जबकि यह काशी विश्वनाथ मन्दिर एक्ट के प्रावधानों के विरुद्ध है । इस आधार पर भी विशाल सिंह को विश्वनाथ मन्दिर के सी.ई.ओ के पद से हटाया जाना उचित है ।

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