मनोरंजन के साथ-साथ कुछ कर गुजरने का ज़ज्बा जगाती फ़िल्म
स्टार कास्ट: दिलजीत दोसांझ, तापसी पन्नू, अंगद बेदी आदि।
निर्देशक: शाद अली
निर्माता: चित्रांगदा सिंह
बॉलीवुड और बायोपिक एक दूसरे के समानार्थी बनते जा रहे हैं। पिछले कुछ सालों में जो बायोपिक्स की बहार आई है उस बहार में एक नया फूल खिला है- ‘सूरमा’। ‘सूरमा’ हॉकी के चैंपियन खिलाड़ी संदीप सिंह की प्रेरणादायक कहानी पर आधारित है। उनकी ज़िंदगी में किस तरह के उतार-चढ़ाव आए, कैसे उन्होंने उस पर विजय हासिल की और अंततः कैसे वो बनते हैं सूरमा.. जिन्हें बाद में फ्लिकर सिंह का टाइटल दिया गया!
फिल्म के शुरुआती हिस्से में ही प्रीतो बनी तापसी पन्नू जिससे संदीप सिंह बहुत प्यार करता है और उसे इंप्रेस करने के लिए उसके साथ हॉकी खेलता है। लेकिन, हार जाता है तब प्रीतो कहती है अगर लाइफ में गोल होगा तो यहां भी हो जाएगा! इस एक लाइन पर पूरी फिल्म का दारोमदार है और इसके बाद किस तरह से संदीप सिंह की ज़िंदगी बदलती है इसी पर आधारित है ‘सूरमा’। एक निर्देशक के तौर पर शाद अली खरे उतरे है। कुछ एक दृश्य को छोड़ दिया जाए तो पूरी फिल्म पर उनकी पकड़ साफ नज़र आती है! कुछ दृश्य जैसे संदीप का ठीक होकर वापस आना या फिर प्रीतो का स्टेडियम में आना और अच्छे बन सकते थे!
अभिनय की बात की जाए तो दलजीत दोसांझ संदीप सिंह बनने में पूरी तरह से सफल रहे हैं। विक्रम बने अंगद बेदी एक अभिनेता के तौर पर अपनी छाप छोड़ जाते हैं! तापसी पन्नू एक समर्थ अभिनेत्री हैं और वह प्रीतो ही नज़र आई हैं। इसके अलावा विजय राज, कुलभूषण खरबंदा, सतीश कौशिक, महावीर भुल्लर आदि भी अपनी छाप छोड़ जाते हैं! खास तौर पर सतीश कौशिक के बड़े भाई बने अभिनेता की सशक्त उपस्थिति फिल्म को रियल बनाने में मददगार साबित होती है।
शंकर-एहसान-लॉय के संगीत की बात करें तो दो गाने छोड़ कर उनका संगीत सामान्य ही रहा! ‘सूरमा’ एक अच्छी फिल्म है। यह फिल्म और बेहतर होती अगर शंकर-एहसान-लॉय इसके बैकग्राउंड स्कोर पर और ज्यादा मेहनत करते! फिल्म के इमोशनल सीन हो या क्लाइमेक्स बैकग्राउंड म्यूजिक उन भावनाओं को उभार नहीं पाया है! a इसे में देशभक्ति का जज्बा हो या संदीप के दुख में सहभागी बनने से दर्शक चूक जाता है! चितरंजन दास की सिनेमेटोग्राफी शानदार रही है। फारुख ने फिल्म को खूबसूरती से एडिट किया है। साथ ही आर्ट डायरेक्शन और कॉस्ट्यूम डायरेक्शन भी फिल्म को अलग स्तर पर ले जाने में मददगार साबित हुए।
कुल मिलाकर सूरमा एक ऐसे विजेता की कहानी है जो अभी तक हम लोगों ने कभी सुनी नहीं। इस प्रेरणादायक कहानी को सपरिवार देखा जा सकता है। साथ ही यह कहना गलत नहीं होगा कि फ़िल्म देखने के बाद मनोरंजन के साथ-साथ कुछ कर गुजरने का ज़ज्बा भी आपके भीतर पैदा होगा।