राजनीति और कूटनीति के पेंचों में फंसी मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी बुलेट ट्रेन परियोजना

मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी अहमदाबाद-मुंबई बुलेट ट्रेन परियोजना राजनीतिक और कूटनीतिक दांवपेंचों में उलझ गई है। जहां एक तरफ गुजरात में कुछ संगठन अधिक मुआवजे के नाम पर किसानों को परियोजना के लिए जमीन देने के खिलाफ लामबंद कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर महाराष्ट्र में मनसे ने सीधे तौर पर परियोजना के विरोध में बिगुल फूंक दिया है। यही नहीं, शांतिपूर्ण नाभिकीय करार के प्रति जापान के रुख ने भी परियोजना के प्रति सरकार के जोश को कम कर दिया है। ऐसे में परियोजना के समय पर पूरा होने को लेकर आशंकाएं गहराने लगी हैं।
जापान के सहयोग वाली देश की इस पहली हाईस्पीड रेल परियोजना का शिलान्यास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले वर्ष सितंबर में किया था। लगभग 1.08 लाख करोड़ रुपये लागत की परियोजना के लिए जापान ने नगण्य ब्याज दर पर 88,000 करोड़ रुपये का सस्ता कर्ज दिया है। लगभग 508 किलोमीटर लंबी परियोजना का अधिकांश भाग एलीवेटेड होगा। जबकि बहुत थोड़ा हिस्सा जमीन के ऊपर और समुद्र के भीतर सुरंग से होकर गुजरेगा।
परियोजना में मुख्य अड़चन एलीवेटेड हिस्से के कार्यान्वयन में आ रही है, जिसके लिए जमीन पर पिलर खड़े किए जाने हैं। इसके लिए लगभग 1400 हेक्टेयर जमीन की जरूरत है। जिसमें 850 हेक्टेयर जमीन गुजरात और महाराष्ट्र के ग्रामीण व आदिवासी इलाकों में पड़ती है। आंदोलनों के कारण अभी तक मात्र 0.9 हेक्टेयर जमीन का अधिग्रहण हो सका है।
परियोजना के कार्यान्वयन की जिम्मेदारी संभाल रही रेल मंत्रालय की कंपनी नेशनल हाईस्पीड रेल कारपोशन आफ इंडिया लिमिटेड (एनएचएसआरसीएल) के एक अधिकारी के अनुसार, ‘महाराष्ट्र और गुजरात में हमें अलग-अलग दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। जहां महाराष्ट्र में परियोजना का ही विरोध हो रहा है। वहीं गुजरात में विरोध जमीन के मुआवजे को लेकर है।
महाराष्ट्र के विरोध से निपटना हमारे बस के बाहर है। परंतु गुजरात में हमने कई गांवों का दौरा कर व सरपंचों से मुलाकात कर जाना है कि किसान निर्धारित मुआवजा लेने को तैयार हैं।, लेकिन उन्हें डर है कि यदि उन्होंने ऐसा किया तो आंदोलनकारियों के कोपभाजन बन सकते हैं। इन स्थितियों में सरकार को ही कुछ करना होगा। अन्यथा चीजें हाथ से निकल सकती हैं। जापानी अधिकारी भी चिंतित हैं और हमसे सवाल पूछ रहे हैं। उन्हें समझाने में हमें काफी मशक्कत का सामना करना पड़ रहा है।’
बुलेट ट्रेन की राह का रोड़ा अकेले जमीन हो ऐसा नहीं है। कुछ कूटनीतिक मसले भी इसकी रफ्तार रोक रहे हैं। इनमें शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए भारत और जापान के बीच हुआ नाभिकीय करार शामिल है।
सूत्रों के अनुसार जुलाई, 2017 से लागू उक्त समझौते के तहत जापान से भारत को शांतिपूर्ण नाभिकीय तकनीक का हस्तांतरण होगा था, लेकिन संबंधित प्रस्ताव को जापानी संसद ‘डायट’ ने अभी तक मंजूरी नहीं दी है।
जापान के इस रुख की वजह चीन के साथ भारत की बढ़ती कूटनीतिक लामबंदी है। यही वजह है कि भारत भी इधर जापानी परियोजनाओं के प्रति अति उत्साह दिखाने से बच रहा है।