माननीयों के गांवों की हालत सामान्य गांवों से भी बदतर
नैनीताल : महात्मा गांधी ने कहा था -असल भारत तो गांवों में बसता है। इसीलिए उन्होंने स्वतंत्रता के साथ ‘ग्राम स्वराज’ का नारा दिया। आजादी के बाद प्रदेश में आदर्श ग्राम के कोरे सपने बुने गए। मसलन पड़ोसी उत्तर प्रदेश के लोहिया ग्राम सियासत बदलते ही आंबेडकर, उत्तराखंड में भाजपा राज आते ही गांधी से अटल ग्राम और फिर मोदीराज में सब कुछ बदलकर ‘सांसद आदर्श ग्राम’ कर दिए गए, मगर आदर्श गांवों की तस्वीर व तकदीर नहीं बदली जा सकी। बल्कि सांसदों के गांवों की तस्वीर साधारण गांवों से भी बदतर है।
जहां तक प्रदेश का सवाल है, पृथक उत्तराखंड की नीव पड़ते ही उम्मीद जगी थी कि गांवों का स्वरूप बदलेगा। विकास की किरण नई सुबह लाएगा। मगर कागजी खानापूरी के बीच भाजपा सत्ता में आई तो सबसे पहले नाम बदलकर ‘अटल आदर्श ग्राम’ किया गया, लेकिन गांवों में कुछ खास बदलाव नहीं आया।
फिर केंद्र ‘अटल आदर्श ग्राम’ को भूली तो राज्य की भाजपा सरकार ने भी ‘अटल’ को बिसरा सांसद आदर्श गांवों से सब्जबाग तो दिखाए मगर उनकी स्थिति भी दयनीय ही है। बुनियादी सुविधाओं को भी तरसे बेशक ‘अटल आदर्श ग्राम’ का नाम बदल कर नए सिरे से योजना का श्रेय लिया गया मगर आज भी गांव बुनियादी सुविधाओं से कोसों दूर हैं। पहाड़ी की ओर औंधे गिरे अटल आदर्श गाव के बड़े बड़े बोर्ड उपेक्षा की कहानी बयां कर रहे।
कागजों में ‘अटल आदर्श ग्राम’ सुविधा संपन्न हरेक ब्लॉक की न्याय पंचायतों में चयनित ‘अटल आदर्श ग्राम’ में विद्युतीकरण, पेयजल, माध्यमिक शिक्षा, मातृ शिशु कल्याण और आंगनबाड़ी केंद्र, ग्रामीण स्वच्छता, पंचायत भवन, सरकारी सस्ता गल्ला, कृषि निवेश आपूर्ति व पशु सेवा केंद्र, साधन सहकारी समिति, डाकघर, दूरभाष, बैंकिंग तथा सिंचाई सुविधाएं उपलब्ध कराई जानी थी। मगर अफसोस ‘अटल आदर्श ग्राम’ मूलभूत सुविधाओं को तरस रहे। सरकारी कागजों में ये सभी गांव सुविधा संपन्न हैं। अब तो सांसद आदर्श गांवों के विकास की बारी है।
बेतालघाट ब्लॉक पर नजर
चापड़, घघरेठी, दाड़िमा, सिमलखा, छड़ा, खैरना व हरतपा अटल आदर्श गांव। ताड़ीखेत ब्लॉक पथुली, पंतकोटली, सगनेठी, बमौड़ा, मल्ला विशुवा, बिल्लेख, पिपली, जैनोली, बमस्यूं।
गांवों के विकास के लिए बजट मिलना बंद
ताड़ीखेत के बीडीओ बालम सिंह बिष्ट ने बताया कि जब अटल आदर्श गाव बने थे तब सरकार से बजट मिलता था। काम कराए भी गए। सरकार बदलने के साथ योजना का नाम भी बदल दिया गया तो ग्रामीण विकास का बजट मिलना ही बंद हो गया। ऐसे में बुनियादी सुविधाओं के विकास से जुड़े सभी कार्य ठप हो गए। नाम बदलने के बाद नहीं मिला कोई निर्देश बीडीओ बेतालघाट राजेंद्र राम आर्या ने बताया कि जब अटल आदर्श गाव बने तब प्रत्येक माह नोडल अधिकारी गाव की समीक्षा करते थे। बाद में योजना का नाम बदलने के बाद अटल आदर्श गांवों के विकास को कोई दिशा निर्देश ही नहीं मिले।