उत्तराखण्डदेहरादून

सहस्रधारा पहुंची वाडिया संस्थान की टीम, समझाया चूने की गुफाओं व जलधारा का महत्व

देहरादूनः वाडिया हिमालय भू-विज्ञान संस्थान की टीम रविवार को सहस्रधारा पहुंची। इस स्थल को भू-विरासत (जियो-हेरिटेज) का दर्जा दिए जाने के बाद विज्ञानियों ने यहां की चूने की गुफाओं और जलधाराओं के महत्व जनता को समझाया।

वाडिया संस्थान के निदेशक डा. कालाचांद साईं ने नागरिकों को बताया कि जिस क्षेत्र में चूना पत्थर होने के साथ वर्षा अधिक होती है, वहां गुफा निक्षेप यानी चूने की गुफाएं बन जाती हैं। साथ ही इनमें से पानी रिसकर अलग-अलग जगह से धारा के रूप में निकलने लगता है। इसी कारण हजार धारा के मुताबिक यहां का नाम सहस्रधारा पड़ा है।

गुफाओं में चूने के रूप में जमाव को सपेलोथेम्स कहा जाता है और यह परत दर परत (लामीना) बढ़ते रहते हैं। प्रत्येक लामीना एक वर्ष के जमाव को इंगित करती है। इसे पूरा जलवायु (पूर्व की जलवायु) के विश्वसनीय संकेतक के रूप में जाना जाता है। इसके आक्सीजन के आइसोटोप्स का अध्ययन कर पूर्व की जलवायु जैसे मानसून की स्थिति या सूखे की स्थिति आदि का सटीक आकलन किया जा सकता है। इस लिहाज से भी शहास्त्रधारा की भौगोलिक संरचना को सुरक्षित रखना जरूरी है। यही कारण है कि सहस्रधारा को भू-विरासत का दर्जा दिया गया है।

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