बिहार
सती शिरोमणि माता अनसूया मेला दो से शुरू ,यह है मान्यता
देहरादून, जन केसरी
देव डोलियों का भावपूर्ण मिलन के साथ ही दो दिसंबर से सती शिरोमणि माता अनसूया मेला का आगाज होने जा रहा है। अनसूया गेट पर पांचों देव डोलियों के मिलन के पश्चात ढोल-दमाउ व वैदिक मंत्रोचारण के साथ श्रद्धालू मंदिर के लिए प्रस्तान करेंगे।
दो दिनों तक चलने वाले इस मेले में मंदिर परिसर में रातभर सांस्कृतिक कार्यक्रम और देवी भक्त रात्रि जागरण का आयोजन किया जाएगा। मंदिर समिति के उपाध्यक्ष विनोद राणा ने बताया कि मेले की तैयारी पूरी तरह से हो गई है। महर्षि अत्रि (ब्रह्मा जी के मानस पुत्र ) की पत्नी थीं। माँ अनसूया समस्त विश्व में पतिव्रता धर्म एवं सतीत्व की आस्था के लिए सुप्रसिद्ध है, वनवास काल में जब राम, सीता और लक्ष्मण चित्रकूट में महर्षि अत्रि के आश्रम में पहुँचे तो अनसूया ने सीता को पतिव्रता धर्म की शिक्षा दी थी।
देव डोलियों का भावपूर्ण मिलन के साथ ही दो दिसंबर से सती शिरोमणि माता अनसूया मेला का आगाज होने जा रहा है। अनसूया गेट पर पांचों देव डोलियों के मिलन के पश्चात ढोल-दमाउ व वैदिक मंत्रोचारण के साथ श्रद्धालू मंदिर के लिए प्रस्तान करेंगे।
दो दिनों तक चलने वाले इस मेले में मंदिर परिसर में रातभर सांस्कृतिक कार्यक्रम और देवी भक्त रात्रि जागरण का आयोजन किया जाएगा। मंदिर समिति के उपाध्यक्ष विनोद राणा ने बताया कि मेले की तैयारी पूरी तरह से हो गई है। महर्षि अत्रि (ब्रह्मा जी के मानस पुत्र ) की पत्नी थीं। माँ अनसूया समस्त विश्व में पतिव्रता धर्म एवं सतीत्व की आस्था के लिए सुप्रसिद्ध है, वनवास काल में जब राम, सीता और लक्ष्मण चित्रकूट में महर्षि अत्रि के आश्रम में पहुँचे तो अनसूया ने सीता को पतिव्रता धर्म की शिक्षा दी थी।
मान्यता है कि देवी अनसूया की महिमा जब तीनों लोकों में प्रसिद्ध हुई तो उनके पतिव्रता धर्म की परीक्षा लेने के लिए पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती ने ब्रह्मा, विष्णु और महेश को विवश कर दिया। पौराणिक कथा के अनुसार तब ये त्रिदेव देवी अनसूया की परीक्षा ले ने साधुवेश में उनके आश्रम पहुँचें और उन्होंने भोजन की इच्छा प्रकट की। लेकिन उन्होंने अनसूया के सामने प्रण (शर्त) रखा कि वह उन्हें गोद में बैठाकर ऊपर से निर्वस्त्र होकर आलिंगन के साथ भोजन कराएंगी। इस पर माँ अनसूया संशय में पड़ गईं। उन्होंने आंखें बंद कर अपने पति का स्मरण किया तो सामने खडे साधुओं के रूप में उन्हें ब्रह्मा, विष्णु और महेश खड़े दिखलाई दिए। तब मां अनसूया ने अपने पति अत्रि ऋषि के कमंडल से तीनों देवों पर जल छिड़ककर उन्हें शिशु रूप में परिवर्तित कर दिया और स्तनपान कराया। इस प्रकार त्रिदेव बाल्यरूप का आनंद लेने लगे। उधर तीनों देवियां पतियों के वियोग में दुखी हो गई। तब नारद मुनि के कहने पर वे अनसूया के समक्ष अपने पतियों को मूल रूप में लाने की प्रार्थना करने लगीं। पत्नियों के वियोग को देख माँ अनसूया का हृदय द्रवित हो गया। उन्होंने बच्चों पर जल छिड़ककर उन्हें उनका पूर्व रूप प्रदान किया और अन्तत: उन त्रिदेवों की पूजा-स्तुति की।
त्रिदेवों ने प्रसन्न होकर अपने-अपने अंशों से अनसूया के यहाँ पुत्र रूप में प्रकट होने का वरदान दिया। ब्रह्मा ने चन्द्रमा, शिव ने दुर्वासा और विष्णु ने दत्तात्रेय के रूप में माँ अनसूया की गोद से जन्म लिया और तभी से सती शिरोमणि अनसूया मेला
यहां है माता अनुसूया का मंदिर—-
माता अनसूया का मंदिर समुद्र तल से 8000 फुट की ऊंचाई पर है। जिला मुख्यालय गोपेश्वर से गोपेश्वर-मंडल मोटर मार्ग पर 13 किमी की दूरी पर मंडल बाजार स्थित है। यहां से 5 किमी की पैदल दूरी तय कर अमृत गंगा के दक्षिण भाग में ऋष्यकुल पर्वत की तलहटी में सुंदर एवं सुरम्य प्राकृतिक छटाओं के बीच माता अनसूया मंदिर है। यहां से करीब 2 किमी की दूरी पर ब्रह्मा जी के मानस पुत्र अत्रि ऋषि का आश्रम स्थित है