बिहार

पढ़िए 19 साल के ‘परमवीर’ की कहानी, पूर्व आर्मी चीफ की जुबानी

नई दिल्ली: ये कहानी है 19 साल के एक ऐसे जाबांज सिपाही की, जिसकी शादी हुए मुश्किल कुछ महीने ही हुए थे, एक मुश्किल लड़ाई में उनके कई साथी मारे जा चुके थे, दुश्मन मशीनगन, ग्रिनेड और रॉकेट से हमला कर रहे थे और उनके पास थी एक राइफल और दिल में अदम्य साहस. फिल्मी स्टाइल में एक के बाद एक 15 गोलियां उन्हें लगीं, एक हाथ टूट गया, लेकिन टूटे हाथ को अपनी ही बैल्ट से बांध कर उन्हेंने चार पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया. उनके स्वचालित हाथियारों को नष्ट कर दिया. एक बंकर को नष्ट कर दिया और उसी हालत में निकल पड़े दूसरे बंकर को तबाह करने. उन्हें देखकर भारतीय सैनिकों का हौसला बढ़ गया और इसके साथ ही कारगिल विजय की इबारत लिख दी गई.

26 जुलाई को कारगिल विजय दिवस है. कारगिल युद्ध में इसी दिन हमने पाकिस्तान पर विजय हासिल की थी. ये दिन है कारगिल युद्ध में अपनी बहादुरी से देश के सम्मान की रक्षा करने वाले सैनिकों को याद करने का. पाकिस्तान द्वारा भारत पर किए गए इस हमले को नाकाम करने के लिए भारत ने ऑपरेशन विजय के नाम से दो लाख सैनिकों को तैनात किया और इसमें 527 कभी लौटकर नहीं आए.

पूर्व सेनाध्यक्ष वीपी मलिक कारगिल युद्ध के समय सेना का नेतृत्व कर रहे थे. उन्होंने इस यु्दध के अपने अनुभवों पर एक किताब लिखी – ‘कारगिल एक अभूतपूर्व विजय.’ इसमें उन्होंने 19 साल के जांबाज सैनिक योगेंद्र सिंह यादव की बहादुरी का खासतौर से जिक्र किया है. टाइगर हिल्स की एक ऐसी लड़ाई जिसे भारतीय सेना लगभग हार चुकी थी, उसे योगेंद्र यादव ने अपने साहस से जीत में बदल दिया. वीपी मलिक ने अपनी किताब में लिखा है, ‘16,500 फुट की ऊंचाई पर टाइगर हिल पर कब्जा करने गई पलटन पर दुश्मनों ने स्वचालित मशीनगन, ग्रिनेड और रॉकेट से हमला कर दिया. पलटन के कमांडर और दो सैनिक मारे गए.’

उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर के रहने वाले योगेंद्र सिंह यादव स्वचालित हथियारों के सामने अपनी राइफल लेकर रेंगते हुए आगे बढ़े. उन्हें एक के बाद एक 15 गोलियां लग चुकी थीं, इसके बावजूद वो दुश्मन के बंकर तक पहुंचे गए. जनरल वीपी मलिक ने लिखा है, ‘नजदीकी भिडंत में उन्होंने चार पाकिस्तानी सैनिकों को मार गिराया और गोलीबारी करने वाले स्वचालित उपकरणों को नष्ट कर दिया.’ उनकी वजह से भारतीय सेना ने टाइगर हिल्स पर एक बार फिर तिरंगा फहरा दिया.

ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव भारतीय सेना के 18 ग्रेनेडियर्स का हिस्सा थे. यादव को दुश्मनों की जितनी गोलियां लग रही थीं, वो दुश्मनों के लिए उतने ही घातक बनते जा रहे थे. उनके कई साथी मारे जा चुके थे, लेकिन वो अकेले ही दुश्मनों के लिए काफी थे. उनका एक हाथ टूट चुका था, लेकिन फिर भी वो लड़ते रहे. उनके द्वारा पाकिस्तानी स्वचालित हथियारों को बंद कर देने से भारतीय सैनिकों को आगे बढ़ने का अवसर मिल गया और जहां कुछ समय पहले तक पाकिस्तानी सैनिक बंकर बनाकर बैठे थे, वहां भारत माता की जय के नारे गूंजने लगे. सबसे खुशी की बात ये कि उन्होंने न सिर्फ पाकिस्तान को धूल चटाई, बल्कि मौत को भी मात दी. इस वीरता के लिए उन्हें देश का सर्वेच्च शौर्य सम्मान परमवीर चक्र दिया गया.

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