जाने ‘टू चाइल्ड पॉलिसी’ को सरकारी योजनाओं से जोड़ना कितना सही?

ये पहला मौक़ा नहीं है, जब बीजेपी शासित राज्यों में ‘टू चाइल्ड पॉलिसी’ पर बात हो रही हो.इससे पहले 2019 में बीजेपी के राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा भी टू चाइल्ड पॉलिसी पर एक प्राइवेट मेम्बर बिल लेकर आए थे. ‘पॉपुलेशन रेगुलेशन बिल 2019’ नाम वाले इस बिल में सरकारी योजनाओं का विशेष तौर पर तो जिक्र नहीं था, लेकिन उन्होंने सांसद, विधायक से लेकर स्थानीय निकाय चुनाव, लोन देने से लेकर राशन देने में इस नीति को लागू करने की बात की थी. हालाँकि उन्होंने इस नीति के ऐलान के 18 महीने बाद से ही इसे प्रभावी बनाने की सिफ़ारिश की थी.
टू चाइल्ड पॉलिसी लाने के पीछे का तर्क़ क्या है?
उत्तर प्रदेश के विधि आयोग के अध्यक्ष रिटायर्ड जस्टिस एएन मित्तल ने बीबीसी से बातचीत में कहा, “प्रदेश में जनसंख्या एक बड़ी समस्या है. जनसंख्या कम होगी, तो संसाधन लंबे समय तक चल पाएँगे और सरकार लोगों को बेहतर सुविधाएँ दे पाएगी. फिर चाहे वो शिक्षा हो या फिर राशन या फिर स्वास्थ्य सुविधाएँ.”उनका तर्क़ है, “अगर कोई जानबूझ कर परिवार नियोजन के तरीक़े न अपनाते हुए लगातार बच्चे पैदा करता है, तो उनके रखरखाव की ज़िम्मेदारी सरकार की नहीं होनी चाहिए. ये ज़िम्मेदारी परिवार की होनी चाहिए. अगर देश या राज्य के विकास में कोई अपना योगदान नहीं दे सकता, तो कम से कम संसाधनों का क़ायदे से इस्तेमाल करने की ज़िम्मेदारी तो निभा ही सकता है.”