उत्तराखण्ड

चुनावी रणनीतियों को तौल रहा पक्ष-विपक्ष

उत्तराखंड : हिमाचल प्रदेश एवं गुजरात के विधानसभा और दिल्ली नगर निगम के चुनावों में पक्ष-विपक्ष ने जो रणनीति अपनाई, उत्तराखंड में भाजपा और कांग्रेस के रणनीतिकार 2024 के लोकसभा चुनाव के दृष्टिकोण से उसका गहराई से विश्लेषण कर रहे हैं।

दिल्ली नगर निगम में 15 साल बाद क्यों सत्ता हाथ से फिसली, यहां भाजपा इसकी भी विवेचना कर रही है, क्योंकि अगले ही साल उत्तराखंड में भी निकाय चुनाव होने हैं। पिछले दो लोकसभा चुनावों में उत्तराखंड में भाजपा का प्रदर्शन शत-प्रतिशत सफलता का रहा है। राज्य की पांचों सीट पर भाजपा ने कांग्रेस को करारी मात दी।

अब पार्टी के समक्ष आगामी लोकसभा चुनाव में अपने इसी प्रदर्शन की पुनरावृत्ति की चुनौती है, ताकि जीत की हैट्रिक लगाई जा सके। गुजरात प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का गृह राज्य है, लिहाजा मतदाताओं पर उनका जादू सिर चढ़कर बोला। गुजरात जन्मभूमि तो उत्तराखंड भी प्रधानमंत्री मोदी की कर्मभूमि की तरह ही रही है।

लोकसभा व विधानसभा चुनाव में कमाल दिखाता रहा है मोदी मैजिक

चाहे वर्ष 2000 से पहले अविभाजित उत्तर प्रदेश के समय इस क्षेत्र में संगठन में निभाई गई भूमिका की बात हो या फिर वर्ष 2014 के बाद प्रधानमंत्री के रूप में उत्तराखंड को दी गई कई सौगात की, सच तो यह है कि देवभूमि में भी मोदी मैजिक लोकसभा एवं विधानसभा चुनाव में अपना कमाल दिखाता रहा है। चार धाम आल वेदर रोड एवं ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल परियोजना समेत एक लाख करोड़ रुपये से अधिक की विकास परियोजनाएं इस अवधि में उत्तराखंड को मिली हैं, जो वर्ष 2014 से पहले कभी नहीं हुआ।

जहां तक हिमाचल की बात है, उत्तराखंड की इसके साथ कई समानताएं हैं। राजनीतिक, सामाजिक परिवेश से लेकर संस्कृति तक में ये दोनों पड़ोसी राज्य काफी कुछ एक जैसे हैं। दोनों राज्यों में हर विधानसभा चुनाव में सत्ता में बदलाव की परंपरा रही है। उत्तराखंड में यह मिथक इस बार टूट गया, लेकिन हिमाचल में नहीं।

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