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गर्मियों में भूजल के भरोसे गंगा, ग्लेशियरों की भूमिका न के बराबर: मौर्य

आईआईटी रुड़की के शोध में सामने आए कई महत्वपूर्ण तथ्य

मैदानी क्षेत्रों में भूजल से 120% बढ़ता है जलस्तर
पटना के बाद घाघरा-गंडक का प्रमुख योगदान

रुड़की । भारत की जीवनरेखा कही जाने वाली गंगा गर्मियों में भूजल के सहारे बहती है। हिमालयी ग्लेशियरों की भूमिका इसमें न के बराबर है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) रुड़की के शोधकर्ताओं ने अपने ताजा अध्ययन में इस चौंकाने वाले तथ्य का खुलासा किया है। शोध में गंगा के हिमालयी उद्गम से लेकर बंगाल की खाड़ी में इसके डेल्टा तक आंकड़ों के आधार पर वैज्ञानिकों ने ये रिपोर्ट तैयार की है। इस शोध से नमामि गंगे, अटल भूजल योजना और जल शक्ति अभियान जैसे राष्ट्रीय मिशनों में तेजी आएगी।
आईआईटी रुड़की ने गर्मियों में भी गंगा का प्रवाह हिमालय के ग्लेशियरों के पिघलने से होने की धारणा को तोड़ दिया है। अध्ययन में पाया गया कि पटना तक गंगा का प्रवाह मुख्य रूप से भूजल के भरोसे होता है। ग्लेशियरों का योगदान इसमें नगण्य है। हिमालय की तलहटी से आगे गर्मियों में हिमनदों का पानी नदी के प्रवाह को प्रभावित नहीं करता। आईआईटी रुड़की के भू-विज्ञान विभाग के प्रो. अभयानंद सिंह मौर्य कहते हैं भूजल गंगा की छिपी जीवनरेखा है। गर्मियों में गंगा के मध्य भाग में भूजल का योगदान जलस्तर को लगभग 120 प्रतिशत तक बढ़ाता है। यानी, भूजल नदी के प्रवाह को दोगुना करने के करीब योगदान देता है।

गंगा का 58 प्रतिशत से अधिक पानी वाष्पीकरण से हो जाता है नष्ट
प्रो. अभयानंद सिंह मौर्य कहते हैं कि अध्ययन के मुताबिक गंगा का सूखना भूजल की कमी से नहीं, बल्कि अत्यधिक जल दोहन, नदी मार्गों में बदलाव और सहायक नदियों की उपेक्षा से हो रहा है। इसके अलावा वाष्पीकरण भी बड़ी चुनौती है। गर्मियों में गंगा का 58 प्रतिशत से अधिक पानी वाष्पीकरण के कारण नष्ट हो जाता है। यह नदी के जल बजट का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी कि वाष्पीकरण के नुकसान को कम करने के लिए तत्काल जल संरक्षण रणनीतियाँ बनानी होंगी।

पटना के बाद सहायक नदियों का दबदबा
शोध में यह भी उजागर हुआ कि पटना के बाद गंगा में जल का प्रमुख योगदान घाघरा और गंडक जैसी सहायक नदियों से आता है। ये नदियाँ गंगा के प्रवाह को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। अध्ययन बताता है कि सहायक नदियों की उपेक्षा और उनके जल मार्गों में हस्तक्षेप गंगा के सूखने का एक बड़ा कारण है।

यह अध्ययन गंगा के ग्रीष्मकालीन प्रवाह को समझने की हमारी सोच को बदलता है। यह न केवल गंगा, बल्कि देश की अन्य प्रमुख नदियों के लिए भी टिकाऊ प्रबंधन रणनीति तैयार करने में मील का पत्थर साबित होगा
प्रो. केके पंत, निदेशक, आईआईटी रुड़की

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