नई दिल्ली| नवंबर 2020 में जब फाइजर और मार्डना का वैक्सीन की प्रभावी क्षमता (90 फीसद) का पता चला तो वैज्ञानिकों के लिए खुशी का ठिकाना नहीं था। उन्हें न सिर्फ कोरोना की वैक्सीन मिल गई थी बल्कि विज्ञान की नई तकनीक एमआरएनए (मैसेंजर आरएनए) पर भी मुहर लग गई। अमेरिका और इजरायल समेत दुनिया के कई हिस्सों में एमआरएनए पर शोध हो रहा है। तेज रफ्तार और लचीलेपन के लिए विकसित इस तकनीक ने संक्रामक बीमारियों के खिलाफ मजबूत संरक्षण प्रदान की है। आम लोगों के लिए भले ही यह तकनीक नई हो लेकिन शोधकर्ता दशकों से इस पर काम कर रहे हैं और इसने अब परिणाम देना शुरू किया है। खासकर कोरोना जैसी महामारी के खिलाफ सफलता दी है जिसने लाखों जिंदगियां छीनी हैं।एमआरएनए पुराने वायरस एचआईवी, बच्चों को होने वाली संक्रामक बीमारी रेस्पिरेटरी सिंकाइटियल वायरस (आरएसवी) और मेटान्यूमोवायरस की वैक्सीन का रास्ता बना सकती है। यह कैंसर के इलाज में भी कारगर हो सकती है, खासकर मेलेनोमा (स्किन कैंसर) और ब्रेन ट्यूमर में। स्व – प्रतिरक्षित रोग, टिक जनित रोग और सिकल सेल रोग की जीन थेरेपी भी संभव होगी।