बच्चों का भविष्य खराब कर रहा है दून का स्मार्ट कैंट बोर्ड

देहरादून। बच्चों को शिक्षित करने के लिए जहां सरकार की ओर से सर्वशिक्षा अभियान सहित कई योजनाएं चलाई जा रही हैं। वहीं, देहरादून के स्मार्ट कैंट बोर्ड के स्कूलों में सुविधाओं का घोर अभाव है। जिससे मासूम बच्चों को शिक्षा हासिल करने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। कहीं शिक्षकों की कमी तो कई जगहों पर संसाधनों का अभाव है। शुक्रवार को जन केसरी की टीम कैंट बोर्ड द्वारा संचालित ब्लूमिंग वर्ल्डस स्कूल पहुंची। जहां विद्यालय के कई कमरों में मासूम बच्चे फर्श पर बैठकर भविष्य संवार रहे थे। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कैंट बोर्ड इन बच्चों के भविष्य को लेकर कितना गंभीर है। स्कूल में बेंच नहीं होने की वजह से ये बच्चे मजबूरी में फर्श पर बैठकर पढ़ रहे हैं। लेकिन कैंट बोर्ड के सीईओ अभिनव सिंह की नजर इन स्कूलों पर नहीं पड़ रही है। मजे कि बात ये है कि ये साहब रोजाना अपने ही विद्यालय परिसर स्थित आरटीसी सेंटर में प्रशिक्षण देने भी जा रहे हैं। लेकिन बच्चों पर इनकी नजर नहीं पड़ती है।ये स्थिति कैंट बोर्ड के कैंट जूनियर स्कूल गढ़ी, कैंट जूनियर स्कूल प्रेमनगर, कैंट गर्ल्स इंटर कॉलेज, ब्लूमिंग वर्ल्डस स्कूल में है। तीनों स्कूलों में संसाधन की कमी है। बेंच और स्टॉफ की कमी है। किताबें अभीतक बच्चों को नहीं मिली है। ब्लूमिंग वर्ल्ड स्कूल के प्रिंसिपल बसंत उपाध्याय से अव्यवस्थाओं पर बातचीत करने की कोशिश की गई तो उन्होंने कैंट बोर्ड के अधिकारियों का समर्थन करते हुए गोलमोल जबाव देने का प्रयास करते रहे।

किताब दी नहीं तो बच्चें पढ़ेंगे कैसे
लापरवाह कैंट बोर्ड के अधिकारियों को समय से वेतन मिल जा रहा है। इसलिए वे ज्यादा काम करने की नहीं सोचते हैं। यहां सभी लोग आराम फरमा रहे हैं। इधर, बच्चों का भविष्य अंधेरे में जा रहा है। अभीतक इन स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों को किताब ही नहीं वितरित की गई है। ऐसे में शिक्षक इन बच्चों को क्या पढ़ा रहे होंगे ये अनुमान लगाया जा सकता है। कायदे से सभी बच्चों को अप्रैल में किताब मिल जानी चाहिए थी। लेकिन कैंट बोर्ड प्रशासन की लापरवाही बच्चों पर भारी पड़ रही है।
तो कौन है जिम्मेदार
मासूम बच्चों को फर्श पर रोजाना बैठाया जा रहा है। इन बच्चों को किताब नहीं दी गई है। इन बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। इसका इसका जिम्मेदार कौन है। किसकी लापरवाही से ये सबकुछ हो रहा है। बाल आयोग की नजर ऐसे स्कूलों पर क्यों नहीं पड़ रही है। जिम्मेदारी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं की जा रही है।