चुनावी मुद्दों से ज्यादा चुनाव में ‘पहाड़ी टोपी’ की चर्चा

देहरादून | विधानसभा चुनाव-2022 टोपी फैशन के लिए भी जाना जाएगा। इस चुनाव में परस्पर विरोधी दल के नेता मतदाताओं को रिझाने के लिए पहाड़ी टोपी पहने नजर आए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी फिर सीएम पुष्कर सिंह धामी, पूर्व सीएम हरीश रावत, नेता विपक्ष प्रीतम सिंह के साथ ही कई दलों के नेताओं ने यह टोपी पहनी।
मसूरी निवासी समीर की इस पेशकश पर असली पहाड़ी टोपी बनाम फैशनेबल पहाड़ी टोपी की बहस भी चल पड़ी है। दरअसल उत्तराखंड में नाव के आकार की काली या फिर सफेद टोपी पहनी जाती थी। मूल रूप से लखनऊ के समीर शुक्ला ने इसमें ब्रह्मकमल जोड़ा।
उत्तराखंड में टोपियों के प्रकार:फेटशिखोई, शिखोई, शिखोली, कनटोपला, कनछुपा, फरफताई, मुनौव बदाणी, बंदरमुख्या, चुफावाली टोपी, दुफड्क्या टोपी
समीर ने उत्तराखंड की परम्परागत तिरछी टोपी को ही नया लुक दिया है। गढ़वाल रायफल और कुमांऊ रेजीमेंट में आज भी यह टोपी सैरिमोनियल टोपी के तौर पर पहनी जाती है। एक तरह से जैसे आर्मी का बैगपाइपर बैंड हमारे मंगलकार्यों में घुल मिल गया, ऐसे ही यह टोपी भी हमारे समाज की पहचान है। हिमाचल की तर्ज पर गोल टोपी को भी लोकप्रिय बनाने का प्रयास किया गया, लेकिन यह सफल नहीं हुआ।
प्रो. डीआर पुरोहित, संस्कृतिकर्मी एवं पूर्व विभागाध्यक्ष गढ़वाल विवि
हिमालयी राज्यों में विविध प्रकार की टोपियां पहनी जाती हैं। उत्तराखंड से हिमाचल तक इसमें क्षेत्र के हिसाब से रंग और डिजाइन बदलते हैं। कुमाऊं में सामान्य तौर पर तिकोनी टोपी पहनी जाती है। स्वतंत्रता आंदोलन की समय इसे गांधी टोपी भी कहा जाता था। काले और सफेद रंग में इसे लोग अधिक पसंद करते हैं।
प्रयाग जोशी, इतिहासकार