भारतीय तीरंदाज़ दीपिका कुमारी रविवार को पेरिस में आयोजित तीरंदाजी विश्वकप (स्टेज़ 3) में तीन गोल्ड मेडल जीतकर वर्ल्ड रैंकिंग में पहले पायदान पर पहुंच गई हैं.
दीपिका ने महिलाओं की व्यक्तिगत रिकर्व स्पर्धा के फाइनल राउंड में रूसी खिलाड़ी एलेना ओसिपोवा को 6-0 से हराकर तीसरा गोल्ड मेडल अपने नाम किया. इससे पहले उन्होंने मिक्स्ड राउंड और महिला टीम रिकर्व स्पर्धा में भी गोल्ड मेडल हासिल किया. दीपिका ने मात्र पाँच घंटे में ये तीनों गोल्ड मेडल हासिल किए हैं.दीपिका इससे पहले मात्र 18 साल की उम्र में वर्ल्ड नंबर वन खिलाड़ी बन चुकी हैं. अब तक विश्व कप प्रतियोगिताओं में 9 गोल्ड मेडल, 12 सिल्वर मेडल और सात ब्रॉन्ज मेडल जीतने वालीं दीपिका की नज़र अब ओलंपिक मेडल पर है.दीपिका अगले महीने टोक्यो ओलंपिक में भाग लेने के लिए जापान जा रही हैं. ख़ास बात ये है कि भारत की ओर से जा रही तीरंदाजी टीम में वह अकेली महिला हैं.
झारखंड के बेहद ग़रीब परिवार में जन्म लेने वाली 27 वर्षीय दीपिका ने पिछले 14 सालों में एक लंबा सफर तय किया है.तीरंदाजी सीखने के लिए अपने घर से निकलते हुए दीपिका के मन में एक संतोष इस बात का था कि उनके जाने से परिवार पर एक बोझ कम हो जाएगा. लेकिन आज दीपिका ने अपने दम पर परिवार का आर्थिक और सामाजिक दर्जा ऊंचा किया है.दीपिका के पिता शिव नारायण महतो एक ऑटो-रिक्शा ड्राइवर के रूप में काम किया करते थे. वहीं, उनकी माँ गीता महतो एक मेडिकल कॉलेज में ग्रुप डी कर्मचारी के रूप में काम करती हैं.ओलंपिक महासंघ ने एक शॉर्ट फिल्म बनाई है जिसमें दीपिका और उनके परिवार ने दीपिका के सफर से जुड़ी चुनौतियों का ज़िक्र किया है.दीपिका के पिता शिव नारायण बताते हैं, “जब दीपिका का जन्म हुआ तब हमारी आर्थिक हालत बहुत ख़राब थी. हम बहुत ग़रीब थे. हमारी पत्नी 500 रुपये महीना तनख़्वाह पर काम करती थी. और मैं एक छोटी सी दुकान चलाता था.”इस फिल्म में ही दीपिका बताती हैं कि उनका जन्म एक चलते हुए ऑटो में हुआ था क्योंकि उनकी माँ अस्पताल नहीं पहुंच पायी थीं.जब ओलंपिक खेलने गई थीं तब भी परिवार की आर्थिक हालत बहुत ख़राब थी.