वृंदावन में प्रवेश करते ही प्राणी सच्चिदानन्द स्वरूप हो जाते हैं :: स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती

खबरीलाल रिपोर्ट (वृंदावन) : मौका था ज्योतिष एवं द्वारका शारदा पीठ के पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी महाराज के 95 तम जन्मदिवस उत्सव के पावन अवसर पर वृंदावन के संत , महात्माओं द्वारा उनका पादुका पूजन एवं सम्मान साथ ही संत सम्मेलन। 10 सितम्बर 2018 वृंदावन स्थित फोगला आश्रम में सायं 5 बजे कार्यक्रम आयोजित था जिसमे वृंदावन के संत, महात्मा, महामंडलेश्वर आदि बहु संख्या में उपस्थित हुए और प्रत्येक संतों ने पूज्य महाराजश्री के पादुका का पूजन पश्चात पुष्पमाला पहनकर उनका श्रीधाम वृंदावन में नन्दन, वंदन, अभिनंदन किया साथ ही अपने मन के अंदर के भावों को प्रकट किया। इस अवसर पर हजारों की संख्या में भक्तगण उपस्थित हुए। सर्वप्रथम महाराजश्री के निज सचिव ब्रह्मचारी सुबुद्धानन्द जी महाराज ने पूज्य महाराजश्री के जीवन पर प्रकाश डाला तत्पश्चात पूज्य महाराजश्री के शिष्य प्रतिनिधि नारायण स्वरूप दंडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती महाराज ने अपनी बात रखी कि किस तरह आज हमारे समाज के बच्चे संस्कार से दूर होते जा रहे हैं और टीवी पर सूर्योदय देखते हैं जिस पर उन्होंने एक सच्ची वाकया भी सुनाया। स्वामिश्री: के कथन के पश्चात मंचासीन संत, महात्मा, महामंडलेश्वर आदि ने अपने मन के भाव महाराजश्री के सम्मान में, उनके कार्यों पर, उनके संकल्पों पर, उनके धर्म के प्रति अडिग रहने पर प्रकट किये।
पूज्य महाराजश्री ने अपने उद्बोधन में कहा – विद्वानों ने कहा है कि वृंदावन सच्चिदानन्द स्वरूप है। जो यहां आते हैं, प्रवेश करते ही सभी प्राणी सच्चिदानन्द स्वरूप हो जाते हैं। आज जो हम यहां सब बैठे हैं प्रत्येक सच्चिदानन्द स्वरूप हैं। जो वृंदावन धाम में निवास करते हैं उनकी बात ही कुछ अलग है। आगे महाराजश्री ने कहा हम लोग यह मानते हैं कि आराध्य मनुष्य नहीं होता है। मनुष्य होने से वह आदरणीय हो सकता है, पूज्यनीय हो सकता है पर आराध्य नहीं हो सकता है। आराध्य तो सिर्फ एक है और वह है परब्रह्म परमात्मा। अंत मे महाराजश्री ने कहा कि यहां के संत, महात्मा भागवत चिंतन कर आध्यात्मिक आनंद प्राप्त कर रहे हैं और यही आध्यात्मिक आनंद का मार्गदर्शन वृंदावन के माध्यम से सारे विश्व को दिया जाए।