उत्तराखण्ड

BJP की बागियों को मनाने की रणनीति फेल

Uttarakhand Election 2022: विधानसभा चुनाव 2022 में पार्टी की परेशानी बन रहे बागियों को मनाने की भाजपा की रणनीति पूरी तरह कामयाब नहीं हो पाई। यही वजह है कि पार्टी के 15 बागी अब भी चुनाव मैदान में डटे हैं। इससे भाजपा के प्रदेश नेतृत्व की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे हैं। भाजपा ने विधानसभा चुनाव में बागियों को मनाने के लिए दावे तो तमाम किए थे, पर हकीकत में नजर कुछ नहीं आया। बागियों को मनाने के लिए प्रदेश नेतृत्व से लेकर सांसदों और पूर्व मुख्यमंत्रियों तक को जिम्मेदारी बांटी गई थी, पर ये दिग्गज पार्टी की अपेक्षा के अनुरूप रिजल्ट नहीं ला सके।

गढ़वाल सांसद तीरथ रावत कर्णप्रयाग और कोटद्वार सीट पर बागियों को नहीं मना पाए। सांसद रमेश पोखरियाल निशंक और राज्यसभा सांसद अनिल बलूनी अलबत्ता डोईवाला सीट पर तीन बागियों को मनाने में कामयाब रहे। वहीं निशंक पिरान कलियर से जयभगवान सैनी को बैठाने में सफल रहे पर धर्मपुर से वीर सिंह पंवार को नहीं बैठा पाए।

पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत को कालाढुंगी में बागी हुए पूर्व प्रदेश महामंत्री गजराज बिष्ट को मनाने का जिम्मा दिया था। वे इस टास्क में तो कामयाब रहे, लेकिन अपनी विधानसभा सीट डोईवाला से एक बागी और अपने कुछ अन्य नजदीकियों को नहीं मना पाए। इसी तरह सांसद और केंद्रीय राज्यमंत्री अजय भट्ट और टिहरी सांसद  राज्य लक्ष्मी शाह भी अपने संसदीय क्षेत्रों में कोई कमाल नहीं दिखा सके।

अनुशासनहीनता का जोर: भाजपा दावा तो अनुशासित पार्टी होने का करती है, पर राज्य के विधानसभा चुनाव में सामने आ रहे बागियों ने उसके अनुशासन की पोल खोल दी। पांच लोकसभा और दो राज्यसभा सांसदों के साथ ही मजबूत प्रदेश नेतृत्व का दम भरने वाली पार्टी के नेता तमाम कार्यकर्ताओं को भी नहीं मना सके। इससे पार्टी संगठन के नेताओं की कार्यशैली पर सवाल उठने लगे हैं। पार्टी के बड़े नेता नाम वापसी के अंतिम दिन तक ऐसे कार्यकर्ताओं को नहीं मना सके, जो सिर्फ पार्टी के लिए वोट कटवा साबित हो सकते हैं।

दो हजार वोटों का अंतर भी पड़ेगा भारी
भाजपा के 15 नेता बागी चुनावी मैदान में ताल ठोक रहे हैं। इनमें से अगर सात आठ नेता पार्टी के अधिकृत प्रत्याशियों के डेढ़-दो हजार वोटर भी काटते हैं तो इसका परिणाम पर असर पड़ सकता है। कई विधानसभा सीट ऐसी भी हैं, जहां बहुत कम अंतर से हार-जीत का फैसला होता है। ऐसे में कुछ सीटों पर बागियों की वजह से अन्य प्रत्याशियों की जीत की लाटरी भी लग सकती है।

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