लिए हाथ मे दंड मन्दिरों को बचाने का प्रयास कर रहे हैं एक सन्यासी
खबरीलाल : काशी में पुराणों में वर्णित मंदिर व देव विग्रहों को तोड़े जा रहे हैं पर काशी के सनातन धर्मी मूक बधिर दर्शक बने हुए हैं। काशी से लगे अन्य शहरों व ग्रामीण इलाकों के लोग भी चुप हैं बस बैठकर नजारा देख रहे हैं। मीडिया एवं सोशल मीडिया के माध्यम से भारत की सनातन जनता भी इस समाचार को पढ़ी है पर वे भी चुप हैं। क्यों और किस कारण चुप हैं ये तो सम्मानित जनता जनार्दन ही बता सकती है।
एक अकेला सन्यासी लिए हाथ मे दंड कर रहें हैं प्राचीन मंदिरों व काशी के धरोहरों को बचाने का प्रयत्न। केवल काशी ही नहीं अपितु लगभग समूचा हिंदुस्तान देख चुका है , जान चुका है कि ज्योतिष एवं द्वारका शारदा पीठ के पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज के शिष्य प्रतिनिधि व भावी शंकराचार्य स्वामिश्री: अविमुक्तेश्वरानंद: सरस्वती विगत 4 महीने से ऊपर काशी के मन्दिरों को बचाने का अथक प्रयास कर रहे हैं जिस हेतु स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने काशी के समस्त देव स्थलों में नंगे पांव जाकर प्रशासन द्वारा इस घृणित कृत्य हेतु माफी मांगी, फफोले पड़ने के बाद भी रक्त रंजित अवस्था मे पंचक्रोशी की यात्रा किये एवं तत्पश्चात सर्वदेव कोपाहर महायज्ञ किये जिससे देवतागण काशीवासियों पर कोई कोप न बरपाए। इसके बावजूद काशी विश्वनाथ मंदिर के मुख्य कार्यपालन अधिकारी व अन्य अधिकारियों ने इस विषय को गंभीरता से नही लिया और न ही केंद्र और राज्य सरकार ने लिया, उल्टा अपने ही पक्ष में अध्यादेश जारी कर दिया। प्रशासन ने आज दिनांक तक जनता को यह स्पष्ट रूप से नहीं बताया कि मंदिर क्यों तोड़े जा रहे हैं, क्यों पूजन से रोका जा रहा है और क्यों बाबा विश्वनाथ परिक्षेत्र के भवनों को खरीदा जा रहा है ? जब की प्रशासन को चाहिए था जनता को भरोसे में लेकर विकास कार्य करने का जैसे सूत्र बता रहे हैं।
स्वामिश्री: जुलाई माह के 5 तारीख के दुर्मुख विनायक के पूजन हेतु पहुंचे पर मंदिर में ताला लगा हुआ था जबकि इसकी सूचना पहले ही प्रशासन को दी जा चुकी थी तथा पूजन के दिन भी कई बार फ़ोन लगाया गया पर ताला नहीं खुला। क्या यह एक दंडी सन्यासी का अपमान नहीं है ? क्या यही संस्कार हैं प्रशासन के अधिकारियों का ? इस घटना के बाद स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने पारक व्रत (उपवास) प्रारंभ किया जिसे देखते हुए विशाल सिंह साहब आये पर वार्ता शुरू ही हुई थी कि नहीं अपना अहम और मिजाज दिखाते हुए चल दिये। इस घटना के पश्चात वाराणसी के डीएम ने अपना प्रतिनिधि मंडल भेजा जिन्होंने स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती की बातों को सुना और उनकी मांगों की एक प्रतिलिपि साथ ले गए। दूसरी तरफ स्वामिश्री: के अनुयायी, भक्तों ने 12 दिनों तक चले पारक व्रत में रोजाना किसी न किसी रूप में विरोध प्रदर्शन करते रहे जिसे गिनती के समाचार पत्र और टीवी चैनलों ने दिखाया जब कि यह राष्ट्रीय धार्मिक मुद्दा है जो 100 करोड़ सनातन धर्मियों से जुड़ा है।
14 जुलाई को पीएम मोदी दो दीनी वाराणसी प्रवास पर आए किंतु उन्होंने भी निराश किया। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ गोराखपीठ के महंत होते हुए भी स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद व सनातन धर्मियों के पीड़ा को नहीं समझे। ऐसा प्रतीत होता है धर्म से ज्यादा सीएम योगी को राजसत्ता अत्याधिक प्यारी है, यदि ऐसा नही होता तो वे खुद स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती से बात कर बीच का रास्ता निकालते।
आज स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती सनातन धर्मियों के पूजन का केंद्र, आस्था का केंद्र, एकता के केंद्र को बचाने कठोर तप कर रहे हैं जिससे हमारे मन्दिर, देवताओं को नास्तिकों के हाथों से बचाया जा सके। परम् पिता परमेश्वर सब देख रही है लेकिन उनके घर मे देर जरूर है पर अंधेर नहीं।