देहरादून

राज्यसभा सासंद प्रदीप टम्टा ने हाजिरी तो बजाई लेकिन सवाल पूछने में चूके

देहरादून।

उत्तराखंड से राज्यसभा सासंद प्रदीप टम्टा छह साल के कार्यकाल में सवाल पूछने में चूक गए। सवाल पूछने के मामले में वह डेढ़ साल पहले उच्च सदन गए नरेश बंसल से भी काफी पीछे रहे। बसंल ने अभी तक सदन में 71 सवाल पूछ लिए हैं, प्रदीप टम्टा ने छह साल में चुनिंदा सवाल ही सदन में पूछे।

उन्होंने 54 चर्चाओं में भाग लिया और तीन प्राइवेट मेंबर बिल राज्य सभा में रखे। हालांकि उच्च सदन में प्रदीप टम्टा की हाजिरी बेहतर रही। वे 80 फीसदी बैठकों में मौजूद रहे। प्रदीप टम्टा जुलाई 2016 में: राज्यसभा चुनकर गए। राज्यसभा की अधिकारिक वेबसाइट में दर्ज विवरण के मुताबिक सदन में पहुंचने के बाद शुरूआती चार सत्र में टम्टा की उपस्थिति सौ फीसदी रही।

अब तक के कार्यकाल में राज्यसभा कुल 373 चली। इसमें टम्टा 80 फीसदी उपस्थिति के साथ 298 दिन सदन में मौजूद रहे। टम्टा की जगह अब भाजपा नेता डॉ. कल्पना सैनी लेंगी।

इन मुद्दों को उठाया: उन्होंने चमोली गढ़वाल के नीति घाटी में संचार सुविधा, पौड़ी गढ़वाल के घिंडवाड़ा में एसबीआई की शाखा खोलने और बेहड़ाखाल-अलासू-कुनकुली मोटर मार्ग को राष्ट्रीय राजमार्ग घोषित करने की मांग को सदन में रखा। उन्हें नीति घाटी में दूरसंचार सेवाएं प्रदान करने की विभिन्न संभावनाओं का पता लगाने का भरोसा दूरसंचार मंत्रालय की ओर से लिखित तौर पर सदन के पटल पर रखा गया। दो अन्य सवालों का उन्हें कोई जवाब नहीं मिला।

तीन बिल भी किए पेश: स्वैच्छिक संगठन (विनियमन) विधेयक 2016, कैपिटल पनिशमेंट बिल 2016 और केंद्रीय हिमालयी राज्य विकास परिषद बिल को राज्यसभा में पेश किया। इनमें स्वैच्छिक संगठन विधेयक अभी लंबित है। बाकी दो को वापस ले लिया गया है।

चार कमेटी में भी सदस्य
प्रदीप टम्टा 2021 में राज्यसभा की अधीनस्थ विधान कमेटी के अलावा लोकसभा की वाटर रिसोर्स पर बनाई गई संयुक्त कमेटी में सदस्य हैं। साथ ही स्वास्थ्य मंत्रालय की एम्स रायबरेली की एडॉक कमेटी और गृह मंत्रालय की राजभाषा समिति के 4 जुलाई 2022 तक स्थाई सदस्य हैं।

मैंने पहले लोकसभा सदस्य रहते हुए और अब राज्यसभा में संपूर्ण हिमालयी क्षेत्र खासतौर पर मध्य हिमालय राज्यों के लिए नए दृष्टिकोण की जरूरत को प्रमुखता से सदन में रखा। इस कार्यकाल में सदन में ज्यादा सवाल पूछने का मौका नहीं मिला। सदस्य संख्या के हिसाब से समय की बाध्यता रही है और दलित-पिछड़ों के सवालों को टालने का काम भी इस सरकार ने किया है।
प्रदीप टम्टा, राज्यसभा सांसद

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