उत्तराखंड में जेलों की हालत उप्र और बिहार से भी बदतर: हाईकोर्ट
नैनीताल।
उत्तराखंड की जेलों की भयावह स्थिति को लेकर बुधवार को मुख्य न्यायाधीश आरएस चौहान की अगुवाई वाली पीठ ने सरकार की जमकर खिंचाई की और अधिकारियों को जमकर लताड़ लगायी तथा जेल महानिरीक्षक को 07 दिसंबर तक सभी जेलों का दौरा कर जेलों के सुधारीकरण को लेकर वस्तिृत रिपोर्ट अदालत में पेश करने के नर्दिेश दिये हैं। मुख्य न्यायाधीश की अगुवाई वाली पीठ में आज जेलों की स्थिति को लेकर संतोष उपाध्याय और अन्य की ओर से पृथक पृथक रूप से दायर विभन्नि जनहित याचिकाओं पर सुनवाई हुई।
गृह सचिव रंजीत सन्हिा और जेल महानिरीक्षक दीपक ज्योति घल्डियिाल वर्चुअली अदालत में पेश हुए। जेलों की वर्तमान स्थिति को लेकर पूर्व जेल महानिरीक्षक एपी अंशुमान की ओर से रिपोर्ट अदालत में पेश की गयी लेकिन अदालत ने इसे खारिज कर दिया। रिपोर्ट में साफ-साफ कहा गया कि प्रदेश की जेलों में कैदियों को क्षमता से दोगुने बंदियों को रखा गया हैै। प्रदेश में जेलों की कुल क्षमता 3540 बंदियों की है जबकि 7421 बंदी भरे गये हैं। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि प्रदेश में एकमात्र केन्द्रीय जेल है और उसमें भी क्षमता से अधिक कैदी रखा गया हैं।
रिपोर्ट में नयी जेलों के नर्मिाण को लेकर कुछ भी नहीं कहा गया है। जिसे अदालत ने गंभीरता से लिया और प्रदेश सरकार और अधिकारियों को बुरी तरह से लताड़ लगायी। अदालत ने कहा कि पिछले 21 सालों में प्रदेश में जेलों के सुधार के नाम पर कुछ नहीं हुआ और प्रदेश की जेलों की स्थिति उत्तर प्रदेश और बिहार से भी बदतर है। अदालत ने कहा कि जेलों में बंदियों और उनके परिजनों के द्वारा मानवाधिकारों का खुला उल्लंघन किया जा रहा है। अदालत ने प्रदेश के उधमसिंह नगर जनपद के सितारगंज स्थित एकमात्र केन्द्रीय जेल को लेकर भी सवाल उठाये।