उत्तराखंड सरकार को झटका, सुप्रीम कोर्ट ने HC के फैसले पर रोक लगाने से किया इनकार
दो से अधिक बच्चों वाले प्रत्याशियों को ग्राम पंचायत के पदों पर चुनाव लडऩे के योग्य करार देने के हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची राज्य सरकार को निराशा हाथ लगी है। देश की सर्वोच्च अदालत ने मामले में स्थगनादेश नहीं दिया। शीर्ष कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं को नोटिस जारी कर तीन सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं। कोर्ट के आदेश के बाद ग्राम प्रधान, उप प्रधान व ग्राम पंचायत सदस्य के पद पर 25 जुलाई 2019 से पहले तीन बच्चे वाले प्रत्याशियों का चुनाव लडऩे का रास्ता साफ हो गया है। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में 25 जुलाई 2019 को कट ऑफ डेट माना था। इस तिथि के बाद दो से अधिक बच्चे वाले प्रत्याशी अयोग्य माने जाएंगे।
पंचायत जनाधिकार मंच के प्रदेश संयोजक व पूर्व ब्लॉक प्रमुख जोत सिंह बिष्टï, कोटाबाग के मनोहर लाल, पिंकी देवी समेत 21 लोगों ने हाई कोर्ट में अलग-अलग याचिका दायर कर सरकार के पंचायत राज एक्ट में किए संशोधन को चुनौती दी थी। जिसमें दो से अधिक बच्चे वाले प्रत्याशियों को पंचायत चुनाव लडऩे के लिए अयोग्य करार दिया गया था। याचिकाकर्ताओं का कहना था कि इस संशोधित एक्ट को लागू करने के लिए ग्रेस पीरियड नहीं दिया गया। संशोधन को बैक डेट से लागू करना विधि सम्मत नहीं है। पिछले दिनों मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति रमेश रंगनाथन व न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ ने फैसला सुनाते हुए इस संशोधन को लागू करने की कट ऑफ डेट 25 जुलाई 2019 नियत कर दी। इस आदेश के बाद कट ऑफ डेट के पहले दो से अधिक बच्चों वाले ग्राम पंचायत प्रधान, उप प्रधान व वार्ड मेंबर के प्रत्याशी चुनाव लडऩे के योग्य हो गए। इस आदेश के खिलाफ राज्य सरकार द्वारा सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर की गई। सोमवार को जस्टिस एनवी रमन्ना की अध्यक्षता वाली संयुक्त पीठ ने राज्य सरकार के हाई कोर्ट के आदेश में स्थगनादेश की अपील को नहीं माना। साथ ही याचिकाकर्ताओं को नोटिस जारी किया। राज्य सरकार के एसएलपी दाखिल करने की भनक लगने के बाद पंचायत जनाधिकार मंच द्वारा सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल की गई थी।
हाई कोर्ट का तत्काल सुनवाई से इन्कार
हाई कोर्ट ने दो बच्चों से अधिक वाला आदेश जिला पंचायत व क्षेत्र पंचायत पदों पर लागू करने की मांग को लेकर दाखिल याचिका पर तत्काल सुनवाई से इन्कार कर दिया। कोर्ट ने साफ किया कि अधिसूचना दो माह पहले जारी हो चुकी है, अब क्यों इस मामले में आज ही सुनवाई की जाए। जबकि ग्राम प्रधानों के मामले मेें कोर्ट फैसला दे चुकी है। याचिकाकर्ताओं की ओर से प्रार्थना पत्र दाखिल कर सोमवार को ही मामले में सुनवाई का आग्रह किया गया था।