उत्तराखण्ड

गंगा सप्तमी पर श्रद्धालुओं ने हरिद्वार की हरकी पैड़ी में लगाई आस्था की डुबकी

हरिद्वार। गंगा सप्तमी में सुबह से ही उत्तराखंड के गंगा घाटों में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ी। विशेषकर हरिद्वार में हरकी पैड़ी पर श्रद्धालुओं ने गंगा स्नान के बाद दान कर पुण्य कमाया।

हरिद्वार में हरकी पैड़ी सहित विभिन्न गंगा घाटों पर श्रद्धालुओं की भीड़ सुबह से ही जुटने लगी। श्रद्धालुओं ने गंगा स्नान के बाद मां गंगा की पूजा अर्चना की। साथ ही दान देकर पुण्य भी कमाया।

इस दौरान हरिद्वार के गंगा घाटों के साथ ही मठ मंदिरों में भी श्रद्धालुओं की भीड़ रही। गंगा सप्तमी पर्व पर कानून और शांति व्यवस्था बनाए रखने के लिए हरिद्वार में कड़ी सुरक्षा व्यवस्था रही। हर तरह गंगा घाटों पर मां गंगा के जयकारे गूंजते रहे। घंटे घड़ियालों की कर्णप्रिय ध्वनि से हर कोई मंत्रमुग्ध नजर आया।

यह है मान्यता 

बैशाख शुक्ल सप्तमी के दिन ब्रह्मा के कमंडल से मां गंगा की उत्पत्ति हुई थी। इसे गंगा जन्मोत्सव भी कहा जाता है। इसी दिन भागीरथ ने अपने घोर तप से मां गंगा को प्रसन्न किया। इसके बाद मां गंगा भगवान शिव की जटाओं में समाहित हुई उसी दिन से यह पर्व आज तक चला आ रहा है।

आज के दिन को अगर कहे की गंगा का जन्म दिवस है, तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है। अर्थात गंगा का उद्भव आज के दिन ही माना गया है। सप्तमी को इसलिए जन्म हुआ, क्योंकि मनुष्य के जन्म सात होते हैं।  7 ही लोक हैं।

दान का विशेष महत्व 

गंगा सप्तमी के दिन गंगा स्नान और दान का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि गंगा सप्तमी के दिन किए गए गंगा स्नान और दानपुण्य से व्यक्ति के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। अतः आज के दिन गंगा के तट पर आचमन लेने से स्नान करने से तप दान पुण्य यज्ञ आदि करने से सात जन्म के पापों का विनाश होता है। इतना ही नहीं सात मामा के कुल का सात अपने कुल का सात ससुराल के कुलों का उद्धार होता है । उनके पापों का विनाश होता है उनके पित्रों को प्रसन्नता मिलती है। आज के दिन स्नान, दान ,पुण्य, यज्ञ और वस्त्र आदि दान करने से जो फल प्राप्त होता है, वह कई हजार अश्वमेध यज्ञ करने के समान माना गया है। ऐसा शिव पुराण में वर्णन आया है।

पिेंडदान और तर्पण का भी महत्व 

भारतीय सेना के पूर्व धर्माचार्य ज्योतिषाचार्य पंडित शक्तिधर शर्मा शास्त्री के अनुसार जिन लोगों की कुंडली में कालसर्प दोष होता है और पित्र दोष होता है।  इस दिन वह पिंडदान करते हैं और तिल से अपने पितरों के प्रति तर्पण करते हैं। इसे तिलांजलि श्रद्धांजलि पुष्पांजलि कहा जाता है। ऐसा करने से उनके समस्त पितरों को मुक्ति मिलती है और उनके घर में सुख समृद्धि उन्नति रिद्धि और सिद्धि समस्त प्राप्त होती है।

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