राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका, जमानत याचिका खारिज
रांची। सुप्रीम कोर्ट ने चारा घोटाले के चार मामलों के सजायाफ्ता लालू प्रसाद यादव को बड़ा झटका दिया है। सर्वोच्च अदालत के मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने राजद सुप्रीमो को बेल देने साफ मना करते हुए उनकी जमानत याचिका खारिज कर दी है। उच्चतम न्यायालय में बुधवार को सुनवाई के बाद अब यह तय हो गया है कि लालू फिलहाल रांची के जेल-अस्पताल में ही रहेंगे। जमानत नहीं मिलने से अब लालू प्रसाद की अपनी पार्टी राष्ट्रीय जनता दल के लिए लोकसभा चुनाव 2019 में भागीदारी की उनकी मंशा अधूरी रह गई है। सुप्रीम कोर्ट ने लालू प्रसाद के वकील कपिल सिब्बल के उस तर्क को भी खारिज कर दिया कि लालू को बेल देने में कोई खतरा नहीं है। इस पर कोर्ट ने दो टूक कहा कि बेल देने में खतरे की कोई बात नहीं, बस आप सजायाफ्ता हैं। इसलिए बेल देने के बारे में नहीं सोच सकते, जमानत याचिका खारिज की जाती है।
सुनवाई के दौरान उच्चतम न्यायालय में राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद यादव के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि लालू यादव को 14 साल की सजा दी गई है और वे कहीं भाग नहीं रहे हैं। ऐसे में उन्हें बेल दिया जाना चाहिए। इस पर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि सजा चाहे 25 साल की हो या 14 साल की इस पर न्यायालय ही फैसला करेगा। हम उच्च न्यायालय से राजनेताओं के खिलाफ मामलों में तेजी लाने के लिए ही कह सकते हैं। अदालत ने कहा कि लालू यादव ने अब तक अपने 25 साल की सजा में से सिर्फ 24 महीने ही सजा काटी है।
इससे पहले मंगलवार को केंद्रीय जांच एजेंसी CBI ने सुप्रीम कोर्ट में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव की जमानत याचिका का विरोध करते हुए जवाबी हलफनामा दाखिल किया था। सीबीआइ की ओर से दिए गए हलफनामे में कहा गया था कि चारा घोटाले के चार मामलों के सजायाफ्ता लालू प्रसाद यादव जेल-अस्पताल से रहकर राजनीति कर रहे हैं। जांच एजेंसी की ओर से लालू को बेल नहीं देने की मांग की गई थी।
सीबीआइ ने राजद प्रमुख की जमानत याचिका का विरोध करते हुए कहा कि लालू बीमारी के आधार पर जमानत मांग रहे हैं ताकि उसकी आड़ में चुनाव में पार्टी की राजनीतिक गतिविधियां जारी रख सकें। मालूम हो कि करोड़ों रुपये के चारा घोटाला से संबंधित तीन मामलों देवघर, चाईबासा और दुमका ट्रेजरी केस में राजद सुप्रीमो ने जमानत के लिए शीर्ष कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
राजद सुप्रीमो ने झारखंड हाई कोर्ट के 10 जनवरी के फैसले को चुनौती दी थी। हाई कोर्ट ने तीनों मामलों में गंभीर आरोपों का हवाला देते हुए उन्हें जमानत देने इन्कार कर दिया था। ये मामले 900 करोड़ रुपये से ज्यादा के चारा घोटाला से संबंधित हैं। 1990 के शुरू में कोषागार से जालसाजी कर पैसे की निकासी की गई थी। उस समय बिहार का बंटवारा नहीं हुआ था और राज्य की तत्कालीन राजद सरकार में लालू यादव मुख्यमंत्री थे।