जाने क्या-क्या कहते हैं हम भारतीय Africans को
कुछ दिनों पहले, ग्रेटर नोएडा में दो Nigerians को जानवरों की तरह धोया गया. याद है, आप पढ़ने वालों में से कुछ सोच रहे होंगे, ‘अरे मैंने भी लगाए थे 2-4 हाथ.’ 12वीं के एक छात्र की ड्रग्स ओवरडो़ज़ से मौत हो गई थी. इसका ‘ज़िम्मेदार’ सोसाइटी के निवासियों ने उन दो Nigerians पर डाल दिया. इस घटना के कुछ दिनों बाद ही केन्या निवासी एक महिला को कैब से निकालकर, उसके साथ मारपीट की गई. ये तो कुछ घटानाएं हैं, ऐसी न जाने कितनी घटनाएं रोज़ाना घटती होंगी, इसका कोई हिसाब नहीं है. आप भी पढ़िए और खुद ही सोचिए दरिंदे, मुजरिम, चोर आदि कौन हैं?
मैं 3 साल पहले, नाइजीरिया से भारत आया. हवाई जहाज़ जब दिल्ली हवाई-अड्डे पर उतरा, तो मैं बहुत Excited था और थोड़ा डरा हुआ. एक नया देश, नए लोग, नई संस्कृति मेरी ज़िन्दगी से जुड़ने वाले थे. ये महात्मा गांधी का देश है, जिसमें मैं कदम रखने वाला था.
मैं उस वक़्त 21 साल का था. मैं बच्चों की तरह ही भारत के इतिहास, इसके अलग-अलग प्रांत और क्षेत्र, यहां के लोगों, उनके खान-पान, भाषाओं, संगीत, फ़िल्मों के बारे में जानने को उत्सुक था. घर से पहली बार बाहर निकला था मैं. मैंने Delhi Paramedical & Management Institute में दाखिला लिया था और सिर उठाए, मुस्कुराहट के साथ मैंने अपनी पहली क्लास में ऐन्ट्री ली.
मेरे साथ जो होने वाला था उसके लिए मैं बिल्कुल भी तैयार नहीं था. मैंने उस दिन से आज तक अपने रंग को लेकर बातें सुनी हैं. कोई दिन ऐसा नहीं बिता जिस दिन मुझे उलाहने नहीं सुननी पड़ीं. जातिवादी अपशब्द, लोगों के डर से देखते चहरे और घूरती निगाहें तो मेरी ज़िन्दगी का अहम हिस्सा बन गए हैं. मैं अकेला भुक्त-भोगी नहीं हूं. हर अफ्रीकी कि यही दशा है.
मैंने पहला हिन्दी शब्द सीखा- ‘कल्लू’. मैं जहां भी जाता हूं, ये शब्द ज़रूर सुनता हूं. क्लास में, रास्तों पर, सब्जी की दुकानों पर, साउथ दिल्ली के मेरे घर के आस-पास. हिन्दुस्तान के लोग मुझे अकसर याद दिलाते रहते हैं कि मैं ‘अश्वेत’ हूं.
अलग दिखने के कारण मैं अकसर डरा रहता हूं. मुझे नहीं पता कब मुझे आदमखोर घोषित कर दिया जाए, या कब पुलिस मेरे घर का दरवाज़ा तोड़कर अंदर आ जाए और मुझे ड्रग्स रखने के इल्ज़ाम में घसीटते हुए ले जाए. हिन्दुस्तानी ये सोचते हैं कि हम अफ्रीकि कोई दलाल हैं, जो लड़कियों का सौदा करते हैं. मैं किसी रेस्त्रां में किसी ख़ूबसूरत लड़की को ‘Hi’ भी नहीं कह सकता, क्योंकि उसने पहले से ही मेरे बारे में एक भावना बनाकर रखी होगी.
मैं हिन्दुस्तान में Black Man बनकर रह गया हूं. हमारे मकान मालिक भी हमें इसलिए घर देते हैं ताकि वे हमसे ज़्यादा पैसे ऐंठ सकें. हम दूसरे भारतीयों की अपेक्षा ज़्यादा किराया देते हैं. हमारे सिर पर छत सिर्फ़ इसलिए है, क्योंकि भारत में लालची लोगों की कमी नहीं है. जब हम किराया देते हैं, तो मकान मालिक या तो हमसे दरवाज़े पर मिलते हैं या फिर घर से बाहर. वे हमसे कभी एक कप चाय के लिए नहीं पूछते. मैंने भारतीयों की आवभगत के बारे में काफ़ी सुना है, पर वैसा कुछ महसूस नहीं किया. मकान मालिक कभी हमारे घर के अंदर नहीं आते, मानो घर के अंदर आना कोई जुर्म हो.
भारतीय पुलिस ने भी हमें निराश किया है. हम हमेशा हिंसा का शिकार होते हैं. पिछले साल Congolese छात्र की मृत्यु भी हो गई. मैं हमेशा ख़ुद से एक ही सवाल करता हूं कि मैं एक आम ज़िन्दगी क्यों नहीं जी सकता, जवाब सुनकर दिल दहल जाता है, पर यही सच है. मैं Black हूं, इसलिए नॉर्मल ज़िन्दगी का हक़ नहीं है मुझे.
भारतीय सरकार ने भी हमें निराश किया है. मैं Association of African Students in India का University Coordinator हूं. हमने Congolese छात्र की मृत्यु के विरोध में प्रदर्शन करने की सोची थी. पर Association को विदेश मंत्रालय से फ़ोन आने लगे. अधिकारी हमसे विरोध न करने की अपील कर रहे थे. मंत्रालय Closed-Door मीटिंग करना चाहती थी. हमसे कहा गया कि मीटिंग ज़्यादा ज़रूरी है, विरोध से ज़्यादा ज़रूरी. हमने मंत्रालय की बात मान ली और कड़े कदम उठाने की अपील की.
हमारे रंग के प्रति जो घृणा है, ये भारतीयों के मन के अंदर बैठ गई है. विदेश मंत्रालय से मीटिंग के बावजूद मैंने आजतक कोई बिलबोर्ड नहीं देखा, जिस पर लिखा हो, ‘अफ़्रीकी हमारे भाई हैं’. मैंने कोई टी.वी. ऐड नहीं देखा, जहां बताया जा रहो कि अफ़्रीकी आदमखोर नहीं होते. इतिहास गवाह है कि हिन्दुस्तान में नरबलि की प्रथाएं थी, पर हमने कभी भारतीयों को आदमखोर नहीं कहा. हमारे ऊपर हो रही ज़्यादती और हिंसा के विरुद्ध कोई काऩून क्यों नहीं है? ये जानकर दुख होता है कि भारत के कई पढ़े-लिखे लोग ये तक नहीं जानते कि अफ़्रीका एक महाद्विप है.
विश्वविद्यालयों में हमसे कहा जाता है कि हम हिन्दुस्तानियों से सौहार्द्र बनाकर रखें. हिन्दुस्तानी जब हमारे खिलाफ़ गुटबाजी करते हैं, तो हमारे साथ कोई खड़ा नहीं होता? ये पहले से मान लिया जाता है कि ग़लती हमारी ही होगी. अफ़्रीकी औरतों से उनकी क़ीमत पूछी जाती है, पर वे विरोध नहीं कर सकती. ये नर्क से भी बद्तर है, पर हम ऐसे ही जीते हैं.
भारत का कोई भी राज्य इस जातिवाद से अछूता नहीं है. नफ़रत की जड़ें बहुत गहरी हैं. भारत में Survive करने के लिए बहुत हिम्मत चाहिए. मैंने कई बार इस देश को छोड़ने का मन बनाया, पर हर बार ख़ुद को समझाया कि सभी लोग एक जैसे नहीं होते. लेकिन मैं अभी तक किसी भी भारतीय से दोस्ती नहीं कर पाया हूं. भारतीय लड़के हमारा मज़ाक उड़ाते हैं और लड़कियां हमसे बात करने से डरती हैं.
मैं बाहर भी बहुत कम जाता हूं क्योंकि वो घूरती निगाहें मुझ से बर्दाश्त नहीं होती. मैं हमेशा दूसरों को तकलीफ न देने की पूरी कोशिश करता हूं और अपनी सुरक्षा का ख्याल रखता हूं. जब भी मैं किसी अफ़्रीकी पर हमले की ख़बर सुनता हूं, तो मुझे लगता है कि अगला नंबर मेरा भी हो सकता है. मैं भारतीय कपड़े भी पहनता हूं ताकि लोग मुझे भारतीय समझें, पर उन्हें मेरे रंग के अलावा कुछ दिखाई ही नहीं देता. जब तक सरकार हमारी मदद नहीं करेगी, हम पर हमले होते रहेंगे.
Nigerian छात्रों को मेरा Suggestion है कि वे भारत न आएं. मैं यहां से एक भी अच्छी याद नहीं ले जाऊंगा, उम्मीद करता हूं कि मेरा थोड़ा दर्द कम हो जाए.