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उपराष्ट्रपति चुनाव में दो दिग्गज हैं आमने-सामने

नई दिल्ली । उपराष्ट्रपति चुनाव में इस बार दो जानी-मानी हस्तियां एक-दूसरे के आमने- सामने हैं। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने अपनी ओर से वरिष्ठ नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री वेंकैया नायडू को मैदान में उतारा है, जबकि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) की ओर से गोपालकृष्ण गांधी उन्हें मैदान में टक्कर दे रहे हैं। हालांकि, इस चुनाव में एनडीए उम्मीदवार वेंकैया नायडू की जीत करीब-करीब तय मानी जा रही है। अब आईये आपको बताते हैं कि क्या है इन दोनों की पृष्ठभूमि।

कौन हैं वेंकैया
एनडीए के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार वेंकैया नायडू के बारे में ऐसा कहा जाता है कि वे अपने छात्र जीवन में साल 1963 में पहली बार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से कबड्डी के प्रति लगाव के कारण जुड़े थे। धीरे-धीरे जुड़ाव बढ़ता गया। वहीं रहते हुए वेंकैया की 1967 में पहली बार अटल बिहारी वाजपेयी से मुलाकात हुई। उस समय वाजपेयी एक कार्यक्रम में आए थे और उद्घोषणा की जिम्मेदारी वेंकैया को मिली थी। युवावस्था में पहुंचे तो जयप्रकाश आंदोलन ने लुभाया। बहरहाल उसके बाद से वह राजनीति के रथ पर सवार हो गए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी पहली मुलाकात तब हुई थी, जब दोनों पार्टी महासचिव थे। मोदी गुजरात में थे और वेंकैया केंद्र में। वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी के बाद पार्टी में सबसे वरिष्ठ वेंकैया खुद को आडवाणी का शिष्य करार देते हैं। आंध्र प्रदेश के नैल्लोर जिले में उदयगिरी विधानसभा क्षेत्र से दो बार विधायक चुने जाने के बाद राष्ट्रीय राजनीति में उनका प्रवेश हुआ। वह खुद इसका इजहार करते रहे हैं कि आडवाणी के अध्यक्षीय काल में उन्हें महासचिव पद की जिम्मेदारी दी गई थी। संगठन की कला उन्होंने आडवाणी से ही सीखी।

पार्टी और सरकार के महत्वपूर्ण पदों पर रहे हैं वेंकैया

29 साल की उम्र में वेंकैया नायडू साल 1978 में पहली बार उदयगिरी से विधायक बने। वेंकैया नायडू आंध्र प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष भी बने। उन्होंने भारतीय जनता पार्टी में राष्ट्रीय महासचिव, राष्ट्रीय प्रवक्ता और अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री की जिम्मेदारी भी संभाली थी। उन्हें भाजपा का राष्ट्रीय अध्यक्ष भी चुना गया था, लेकिन आम चुनाव में हार के बाद नायडू ने इस्तीफा दे दिया था। मोदी सरकार में वह ग्रामीण विकास, सूचना प्रसारण और संसदीय कार्य मंत्रालय का महत्वपूर्ण जिम्मा संभाल रहे थे।

वेंकैया के राजनीतिक सफर पर एक नज़र-

– 29 साल की उम्र में 1978 में पहली बार बने विधायक
– 1988 से 1993 के बीच आंध्रप्रदेश भाजपा के अध्यक्ष रहे
– 1993 से 2000 तक भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव पद पर रहे
– 1996 से 2000 तक पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता बने रहे
– 1999 में वाजपेयी सरकार में ग्रामीण विकास मंत्री बने
– 2002 में पहली बार भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए
– 2004 में फिर राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए, लेकिन उसी साल हार के बाद इस्तीफा
– 2014 के मई से मोदी सरकार में ग्रामीण विकास, सूचना एवं प्रसारण और संसदीय कार्यमंत्री बने

यूपीए के उपराष्ट्रपति उम्मीदवार गोपालकृष्ण गांधी

यूपीए ने उपराष्ट्रपति उम्मीदवार के तौर पर गोपालकृष्ण गांधी को मैदान में उतारा है। पांच अगस्त को होने वाले उपराष्ट्रपति चुनाव को 18 विपक्षी दलों की बैठक में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी, उपाध्यक्ष राहुल गांधी, पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, टीएमसी के डेरेक ओब्रायन, सीपीआईएम से सीताराम येचुरी, सपा के नरेश अग्रवाल, नेशनल कॉन्फ्रेंस से उमर अब्दुला, बसपा से सतीश चंद्र मिश्रा और आरएलडी के अजीत सिंह शामिल थे।

राजनीतिक जानकारों की मानें तो विपक्षी दलों ने गोपाल कृष्ण गांधी का नाम आगे बढ़ाकर एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश है। अब आइये आपको बताते है कौन है गोपाल कृष्ण गांधी।

कौन हैं गोपाल कृष्ण गांधी

गोपाल कृष्ण गांधी का जन्म 22 अप्रैल 1945 को हुआ था। उनके पिता का नाम देवदास गांधी और मां का नाम लक्ष्मी था। गोपाल कृष्ण गांधी ने सेंट स्टीफेंस कॉलेज से इंग्लिश लिट्रेचर में मास्टर्स की पढ़ाई की। इसके साथ ही, गोपाल कृष्ण गांधी कई पदों पर भी रह चुके हैं। 1968 से 1992 तक वह भारतीय प्रशासनिक सेवा में रहे। 1985 से 1987 तक वह उप-राष्ट्रपति के सचिव पद पर भी रहे। साल 1987 से 1992 तक वह राष्ट्रपति के संयुक्त सचिव रहे और 1997 में राष्ट्रपति के सचिव बने।

गोपाल कृष्ण गांधी युनिइडेट किंगडम में भारतीय उच्चायोग में सांस्कृतिक मंत्री के पद का दायित्व भी संभाल चुके हैं। साथ ही लंदन में नेहरू सेंटर के डायरेक्टर भी वह रह चुके हैं। गांधी ने लिसोटो में भी भारतीय उच्चायुक्त का पदभार संभाला था। गोपाल कृष्ण गांधी, साल 2000 में श्रीलंका में भारतीय उच्चायुक्त, 2002 में नॉर्वे में भारतीय राजदूत और आइसलैंड में भी बतौर भारतीय राजदूत अपनी सेवाएं दे चुके हैं। वहीं 2004 से 2009 तक वह पश्चिम बंगाल के गवर्नर भी रह चुके हैं।

लोकसभा और राज्यसभा में दोनों पार्टियों का अंकगणित

उपराष्ट्रपति के चुनाव में लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य ही सिर्फ वोट करते हैं। मौजूदा स्थिति में एनडीए की जीत में मुश्किल नहीं दिख रही है। दोनों सदनों में कुल सदस्य संख्या है 790 और अब राज्यसभा में भाजपा के सबसे ज्यादा 58 सांसद हैं, जबकि देश की मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस के 57 सांसद हैं। भाजपा की नेतृत्ववाली एनडीए के पास लोकसभा में 340 और राज्यसभा में 85 सांसद हैं। इस तरह कुल मिलकार इनके पास आंकड़ा है 425 का।

 

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