अभिव्यक्तिक की आजादी के नाम पर राष्ट्रगान का अपमान

सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ कश्मीर के दीक्षांत समारोह राष्ट्रगान बजता रहा और बहुत सारे छात्र आराम से बैठे रहे.
लोकतंत्र के नाम पर और अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर, क्या आप अपने माता-पिता के सम्मान में खड़े होना बंद कर देंगे, और अपने परिवार का अपमान करने लगेंगे? आपमें से ज़्यादातर लोग ऐसा नहीं करेंगे. लेकिन अब इस देश में यही हो रहा है. मातृभूमि, मां के समान होती है, लेकिन भारत में लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर मातृभूमि का अपमान हो रहा है. राष्ट्रगान का अपमान हो रहा है. ये एक ऐसी सोच है जो सीधे देश की आत्मा पर वार करती है.
जम्मू और कश्मीर की राजधानी श्रीनगर से कुछ ऐसी तस्वीरें आई हैं जिन्हें देखकर आपको गुस्सा आ जाएगा. ये तस्वीरें श्रीनगर में मौजूद सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ कश्मीर के दीक्षांत समारोह की हैं. जहां राष्ट्रगान बजाया गया. लेकिन राष्ट्रगान का घोर अपमान हुआ. राष्ट्रगान बजता रहा और बहुत सारे छात्र आराम से बैठे रहे. कुछ छात्र वीडियो रिकॉर्ड करते रहे. इसे देखकर लगता है कि किसी को भी राष्ट्र के सम्मान की परवाह नहीं है.
यह घटना बुधवार की है. शेर-ए-कश्मीर कन्वेंशन सेंटर में जब राष्ट्रगान का अपमान हुआ तब वहां जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और राज्यपाल एनएन वोहार भी मौजूद थे. लेकिन किसी ने इस पर आपत्ति नहीं की. राष्ट्रगान का अपमान होता रहा और ये लोग चुपचाप देखते रहे.
ऐसा लगता है जैसे अब हमारे देश के लोगों की रगों का खून पानी बन चुका है. मन में देशभक्ति की भावना मर चुकी है. और हम अपने देश का अपमान झेलने के आदी हो चुके हैं. राष्ट्रगान के अपमान को शायद हमने अपने देश की किस्मत मान लिया है. अब हमें अपने देश का अपमान चुभता नहीं है.
इस कन्वेंशन सेंटर में बहुत सारे ऐसे लोग भी हैं जो राष्ट्रगान का सम्मान करने के लिए खड़े हुए थे. उन्होंने अपनी आंखों से देखा कि राष्ट्रगान का अपमान हो रहा है लेकिन किसी ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी. क्या इस हॉल से निकलने के बाद एक भी छात्र ने जाकर उन लोगों की शिकायत की जो राष्ट्रगान का अपमान कर रहे थे? क्या किसी को इस घटना से दर्द नहीं हुआ? देश का दुर्भाग्य है कि ज़्यादातर लोग अब राष्ट्रगान के दौरान, सिर्फ खड़े होकर औपचारिकता पूरी कर देते हैं. और उस औपचारिकता को ही अपनी देशभक्ति मान लेते हैं.
राष्ट्कवि रामधारी सिंह दिनकर की बहुत मशहूर पंक्तियां हैं, जो तटस्थ हैं, समय लिखेगा उनका भी अपराध. इसका मतलब है अगर कहीं कुछ गलत हो रहा तो उस गलत को होते हुए देखना और चुप रहना भी किसी अपराध से कम नहीं.
हमारे देश में इन देशविरोधी गतिविधियों का समर्थन करने वाले बुद्धिजीवी भी बहुत अजीबो-गरीब तर्क देते हैं. कुछ लोगों ने ये तर्क भी दिए कि ये छात्र बच्चे हैं और इनकी कोई गलती नहीं हैं. ये बड़े शर्म की बात है कि इस दीक्षांत समारोह में जो छात्र मौजूद थे वो स्नातक हैं. क्या इन छात्रों को बच्चा कहा जा सकता है. और अगर मान भी लिया जाए कि ये लोग स्कूली बच्चे हैं तो वो कौन से स्कूल हैं जहां इन बच्चों की पढ़ाई हुई है. क्योंकि हमें लगता है कि हर वो स्कूल बंद हो जाना चाहिए जो बच्चों को देश के राष्ट्रीय प्रतीकों और भावनाओं का सम्मान करना नहीं सिखाता.
भारत के ज्यादातर स्कूलों में शुरुआत से ही ईश्वर की प्रार्थना के साथ-साथ राष्ट्रगान भी होता है. छोटे-छोटे बच्चे भी बचपन से राष्ट्रगान का सम्मान करना सीखते हैं. लेकिन शायद कश्मीर में बच्चों को राष्ट्रविरोधी शिक्षा दी जा रही है इसीलिए कहीं बच्चे पत्थरबाजी करते हुए नज़र आते हैं, तो कहीं पर छात्र राष्ट्रगान का अपमान करते हैं.
यही छात्र नौकरी की तलाश में दिल्ली और मुंबई आएंगे. इन लोगों को नौकरी भारत में ही चाहिए. इन्हें इलाज के लिए भी दिल्ली और भारत के दूसरे बड़े शहरों के अस्पताल अच्छे लगते हैं. इन छात्रों को बस चाहिए, ट्रेन चाहिए, मेट्रो चाहिए, घर चाहिए, राशन कार्ड चाहिए, इन्हें सरकारी योजनाओं के सारे लाभ चाहिए. अगर विदेश जाना हो तो भारत का ही पासपोर्ट चाहिए और एक दिन में चाहिए लेकिन इन्हें भारत का राष्ट्रगान नहीं चाहिए.
भारत से 4 हज़ार 500 किलोमीटर दूर Seoul में जब एक Cinema Hall में भारत का राष्ट्रगान बजा तो South Korea की First Lady भी राष्ट्रगान के सम्मान में खड़ी हो गईं । लेकिन विडंबना ये है कि भारत के अंदर जम्मू-कश्मीर के एक विश्वविद्यालय के छात्रों ने राष्ट्रगान के सम्मान की कोई परवाह नहीं की ।
सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ कश्मीर के प्रशासन को इन छात्रों पर कार्रवाई करनी चाहिए । लेकिन इस यूनिवर्सिटी ने दुनिया को दिखाने के लिए एक Press Release जारी करके अपने कर्तव्यों से छुट्टी प्राप्त कर ली है. यूनिवर्सिटी ने अपनी विज्ञप्ति में लिखा है कि सोशल मीडिया पर प्रसारित वीडियो फर्जी है. ऑडिटोरियम में जब राष्ट्रगान बज रहा था तो सभी छात्र और दूसरे गणमान्य लोग खड़े हुए थे.
इस घटना के 2 वीडियो हैं. एक वीडियो ऑडिटोरियम का है और दूसरा एक कमरे का है. कमरे में एक बड़ी स्क्रीन पर ऑडिटोरियम से सीधा प्रसारण दिखाया जा रहा था. जब राष्ट्रगान बजा तो यहां भी लोग खड़े नहीं हुए. वीडियो में एक व्यक्ति खड़ा हुआ दिखाई दे रहा है. यूनिवर्सिटी प्रशासन इन्हीं तस्वीरों को अपने सुरक्षा कवच की तरह इस्तेमाल करना चाहता है. लेकिन सवाल ये है कि अगर वो लाइव प्रसारण था तो भी क्या वहां मौजूद लोगों को राष्ट्रगान के सम्मान में खड़ा नहीं होना चाहिए. हमें लगता है कि यूनविर्सिटी को इस मामले की जांच करके आरोपियों को सज़ा देनी चाहिए. इस तरह की प्रेस विज्ञप्ति से देश से किनारा करने वाली मानसिकता को प्रोत्साहन मिलता है. और जब ये मानसिकता हद से गुज़र जाती है तो युवाओं के हाथ में डिग्री की जगह पत्थर आ जाते हैं और वो पत्थरबाज़ी करने लगते हैं.
हो सकता है कि हमारे देश के बुद्धिजीवी कश्मीर में हुई इस घटना को भी अभिव्यक्ति की आज़ादी से जोड़ दें. इस चिंताजनक घटना की वजह खुद हमारे ही देश का बुद्धिजीवी वर्ग है. जब आप अपने ही देश में ऐसे सवाल उठाने लगते हैं कि राष्ट्रगान का सम्मान करने के लिए खड़े होना चाहिए या नहीं? तो इसका युवाओं की सोच पर बहुत बुरा असर पड़ता है. इन लोगों की वजह से देश विरोधी ऐजेंडा चलाने वालों की हिम्मत बढ़ जाती है.
आज ऐसे लोगों को भारत से साढ़े चार हज़ार किलोमीटर दूर साउथ कोरिया से आया एक वीडियो बहुत ध्यान से देखना चाहिए. इस वीडियो में साउथ कोरिया की पहली महिला Kim Jung sook (किम जुंग सुक)) दिखाई दे रही हैं, जो भारत के राष्ट्रगान के सम्मान में खड़ी हुई हैं. South Korea की राजधानी Seoul के एक सिनेमाहॉल में भारतीय फिल्म दंगल दिखाई जा रही थी. इस फिल्म के एक सीन में भारत का राष्ट्रगान बजने लगा जिसे देखकर Kim Jung sook खड़ी हो गईं. वे साउथ कोरिया में पढ़ रहे भारत के कुछ छात्रों के साथ फिल्म देखने गई थीं. वे अपने पति, साउथ कोरिया के राष्ट्रपति Moon Jae-in के साथ 3 दिन की यात्रा पर भारत आ रही हैं. इससे पहले उन्होंने साउथ कोरिया में पढ़ रहे भारतीय छात्रों से मुलाक़ात की और उनके साथ थियेटर में जाकर फिल्म दंगल देखी.
इस पूरे वीडियो को देखने का दूसरा नज़रिया ये भी है कि किसी देश के राष्ट्रगान के प्रति सम्मान और देशभक्ति की भावना उसी व्यक्ति के मन जाग सकती है, जो खुद सच्चा देश भक्त हो और अपने देश से प्यार करता हो. South Korea एक ऐसा ही देश है जहां के लोग सच्चे देशभक्त हैं. यहां के लोग देश के विकास को अपना पहला धर्म मानते हैं और पूरे समर्पण के साथ देश के विकास में योगदान देते हैं. हमारे देश के लोग चाहें तो साउथ कोरिया से बहुत कुछ सीख सकते हैं.