उत्तराखण्ड

केदारनाथ में तीन पवित्र कुंडों का अता-पता नहीं

रुद्रप्रयाग : आपदा के बाद केदारपुरी भले ही नए स्वरूप में बस चुकी हो, लेकिन यहां मलबे में दफन पौराणिक परंपराओं से जुड़े तीन कुंडों का आज भी कोई अता-पता नहीं है। हैरत देखिए कि आपदा के चार साल बाद भी इन कुंडों को मलबे से बाहर निकालने की कोई ठोस कवायद नहीं हुई। इससे यहां तीर्थ पुरोहितों में भी खासा रोष है।

जून 2013 में आई आपदा में केदारपुरी में रेतस, हंस, उदक, अमृत और हवन कुंड भी तबाह हो गए थे। बाद में पुनर्निर्माण कार्यों के दौरान श्री बदरी-केदार मंदिर समिति और निम (नेहरू पर्वतारोहण संस्थान) ने अमृत व उदक कुंड को तो खोज निकाला, लेकिन रेतस, हंस व हवन कुंड का आज तक कोई अता-पता नहीं चला। यही नहीं, अमृत व उदक कुंड पर भी अब तक कार्य शुरू नहीं हुआ।

बता दें कि केदारपुरी में स्थित इन सभी कुंडों का पौराणिक काल से ही विशेष महत्व रहा है। उदक कुंड का जल तो इतना पवित्र माना जाता था कि यात्री इसे साथ ले जाना नहीं भूलते थे। मान्यता है कि मृत्यु के समय यदि व्यक्ति के गले में यह जल डाल दिया जाए तो वह आवागमन के चक्र से मुक्त हो जाता है। हंस कुंड में पितरों के तर्पण का विशेष महत्व बताया गया है। इसी तरह रेतस कुंड के बारे में कहते हैं कि महादेव के कामदेव को भस्म करने के बाद यहां उसकी पत्नी रति ने विलाप किया था। यहां पर ‘ऊं नम: शिवाय’ का उच्चारण करने पर पानी में बुलबुले उठते थे, लेकिन अब कुंडों के लुप्त हो जाने से यात्री मायूस लौट रहे हैं।

केदारनाथ नगर पंचायत सलाहकार समिति के पूर्व अध्यक्ष एवं तीर्थ पुरोहित श्रीनिवास पोस्ती कहते हैं कि आपदा के चार वर्ष बाद भी कुंडों का पता न लगना काफी दुखद है। सरकार का ध्यान सिर्फ केदारनाथ मंदिर पर ही है। वहीं, केदार सभा के अध्यक्ष विनोद शुक्ला ने भी अभी तक कुंडों का जीर्णोद्धार न होने पर नाराजगी जताई है।

नमामि गंगे में होगा कुंडों का निर्माण

केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने केदारनाथ में कुंडों का पुनर्निर्माण नमामि गंगे के तहत करने के निर्देश गत वर्ष अधिकारियों को दिए थे। जून अंतिम सप्ताह में नमामि गंगे के दो इंजीनियर धाम पहुंचकर परियोजना का जायजा भी ले चुके हैं। बदरी-केदार मंदिर समिति (ऊखीमठ) के कार्याधिकारी अनिल शर्मा बताते हैं कि परियोजना पर एक माह में कार्य शुरू होने की संभावना है।

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