बिहार

ब्राह्मण नहीं होंगे दरकिनार, चाबी होगी ब्राह्मणों के हाथ चाहे बने जो सरकार

नई दिल्ली।हिन्दुस्तान की धरती पर ऐतिहासिक महत्व की घटना आकार लेने जा रही है। बाबा विश्वनाथ की धरती पर ब्राह्मण अपना सिरमौर चुनने जा रहे हैं। ओ३म् श्री लोकहित मनोमन्थन में यह महान् कार्य होगा जो 16 दिसंबर को वाराणसी के रुद्राक्ष कन्वेशन्शन सेंटर में संपन्न होने जा रहा है। एकजुटता के लिए ब्राह्मण समाज की इस पहल के राजनीतिक परिणाम भी होंगे। यूपी ही नहीं, देश की सियासत पर इसका असर पड़ना तय है। रूद्राक्ष कन्वेन्शन सेंटर में ब्राह्मणों के इस महासम्मेलन में 1200 ब्राह्मण इकट्ठा हो रहे हैं जो सबसे पहले लोकहित सप्त समिति तय करेंगे। इस समिति में 50 ब्राह्मण होंगे। यही समिति समाज की दशा और दिशा पर विचार करेगी और ब्रह्मादेश को कार्यान्वित कराएगी। इसके लिए समिति परस्पर परामर्श से ब्राह्मण समाज के सारथी का चयन करेगी। इस लोकहित सप्त समिति में गायत्री, भारती, उसनिक, जगति, तृष्टप, अनुष्टप और पंक्ति शामिल हैं।ब्राह्मण समाज की इस पहल को अपने अतीत के गौरव को पुन: प्रतिष्ठित करने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है। अध्यात्म, कला, संस्कृति और संगीत की बुनियाद पर बने रूद्राक्ष सेंटर को भी इस मकसद के लिए चुने जाने का प्रतीकात्मक महत्व है। अरुण कुमार दुबे जैसे बड़े ब्राह्मण चेहरे इस अवसर पर मौजूद रहेंगे। श्री दुबे ओम श्री ट्रस्ट के ट्रस्टी हैं। ब्राह्मणों में यह भाव जगा है कि अब तक केवल उनका उपयोग सरकार बनाने के लिए किया जाता रहा है। मंशा पूरी हो जाने के बाद सर्व समाज को प्रताड़ित करने का काम सरकारें करती रही हैं। ब्राह्मण समाज अब इस पर अंकुश लगाएगा। यह काम ब्रह्मादेश के जरिए होगा, जो सारथी जारी किया करेंगे। मकसद यह है कि सरकार की मति कुमति ना हो। समाज का मानना है कि ब्राह्मण सदैव दूसरे को देने में विश्वास रखते हैं, मगर किसी का छीन कर नहीं। ब्रह्म विधान इसका सबूत है। ब्रह्मविधान हर व्यक्ति के लिए समानता, पानी, ऊर्जा, स्वास्थ्य और दवा तक पहुंच, सुरक्षा व सामाजिक सुरक्षा, न्याय, मुफ्त शिक्षा, ज्ञान, भोजन, किसानी, दक्षता, रोजगार, उद्यमिता, नेतृत्व और सेवा, विकास के अवसर और बाकी चीजें सुनिश्चित करता है। ब्राह्मण नेतृत्व को विश्वास है कि ब्राह्मणों की पुनर्एकजुटता से जातिवाद, नस्लवाद और भ्रष्टाचार का भी अंत होगा। ब्राह्मण समाज यह महसूस कर रहा है कि राजनीतिक दल स्वयं को विधाता मान कर राज करने की दिशा खो चुके हैं। इसलिए शासन को ब्रह्मविधान के अनुरूप निर्देशित करने की जरूरत है। ब्राह्मण समाज का मानना है कि समाज के हर वर्ग को स्वाभाविक रूप से फलने-फूलने का अवसर ब्रह्मविधान देता है। सृष्टि के आरंभ से ही ब्रह्मविधान समाज का हिस्सा रहा है। ब्रह्मविधान राजनीतिक विषय नहीं है। हालांकि वर्तमान में ब्राह्मण निर्वाचित जन प्रतिनिधियों की संख्या कम नहीं है और वे राजनीति के शीर्ष पदों पर भी हैं लेकिन ब्राह्मण समाज का मानना है कि ये आंकड़े मात्र हैं। समस्या यह है कि आज लोकतन्त्र को निजी मानकर चलाया जा रहा है। अतीत में जब ब्रह्मविधान था तब प्राकृतिक संसाधनों पर आम लोगों का अधिकार हुआ करता था और उनका इस्तेमाल केवल समाज के विकास के लिए किया जा सकता था। वातावरण प्रदूषित ना हो, इसकी भी चिंता समाज को हुआ करती थी। मानव इतिहास का स्वर्ण युग का आधार नैतिक और बौद्धिक स्तर रहा था। आदिकाल से ब्राह्मण ज्ञान, धर्म और संस्कृति के रक्षक-संरक्षक रहे हैं और देश में शांति, सौहार्द, खुशी, सुरक्षा, समृद्धि और प्रगति को सुनिश्चित करने में ब्राह्मणों की भूमिका सवालों से परे है। आज जो दुर्दशा देखने को मिल रही है उसका मूल कारण नेतृत्व से ब्राह्मण समाज का दूर होना है। नेतृत्व, प्रशासन, व्यवसाय और आम तौर पर पूरे सभ्य समाज का नेतृत्व ब्राह्मणों ने किया है। आजादी के बाद ऋग्वेद की प्रेरणा से ही हमने लोकतंत्र की राह अपनायी। लोकतंत्र की अवधारणा वेदों की ही देन है। चारों वेदों में इस संबंध में कई सूत्र मिलते हैं और वैदिक समाज का अध्ययन भी इसे स्पष्ट करता है। ऋग्वेद में सभा और समिति का वर्णन मिलता है जिसमें राजा, मंत्री और विद्वानों से विचार-विमर्श करने के बाद ही कोई निर्णय लिया जाना दर्शाया गया है। हालाकि स्वतंत्र भारत में आगे चलकर स्थिति यह बनी कि केवल शासक बदल गये, चरित्र नहीं बदला। राजनीतिक दल टैक्स दिए बगैर अकूत दौलत इकट्ठा कर रहे हैं। समर्थकों के समय, धन, प्रयास और उनसे वोट छीनने का काम राजनीतिक पार्टियां कर रही हैं। घड़ियाली आंसू के साथ सरकारें अपनी जिम्मेदारियों को चैरिटी बताकर पेश करती रही हैं। ब्राह्मण समाज ने महसूस किया है कि समय आ गया है जब निस्वार्थ नेतृत्व स्थापित किया जाए। ऐसा करके ही स्वर्ण युग की वापसी हो सकती है। ब्राह्मण समाज का मानना है कि सभी लोगों के लिए यह जरूरी है कि वे सुनने, आदर देने और सेवा करने को स्वभाव बनाएं और एकता, अखण्डता, शांति और प्रगति को सुनिश्चित करें। ओम श्री लोकहित सप्तसमिति इस मकसद के लिए है। यह शानदार भविष्य की वजह बनेगा। लोकहित सप्तसमिति की बैठकों में मनमंथन से सामूहिक विवेक से ब्रह्मादेश आता है। हर ब्रह्मादेश शानदार भविष्य की दिशा में साझा संकल्प है जो जनता के सामूहिक विवेक को तैयार करता है। इसमें विभिन्न आवाज, सोच, दिमाग, नीति, आशा और उम्मीदें शामिल हैं।

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