बिहार

पहले से तय था केंद्र के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का हश्र, फिर विपक्ष ने ऐसा क्‍यों किया

[सुशील कुमार सिंह]। केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का हश्र पहले से तय था। ऐसे में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों की मंशा इसके माध्यम से अधिक से अधिक सियासी लाभ सुनिश्चित करने की थी। कुल मिलाकर विपक्ष की एक जिद के चलते करदाताओं की पूंजी एक व्यर्थ की कवायद पर खर्च हुई। हैरानी इस बात की भी है कि जब विपक्ष को पता था कि संख्या बल के लिहाज से सरकार पूरी तरह सहज है तो फिर यह प्रस्ताव लाया ही क्यों गया? वास्तव में इस विधायी प्रक्रिया के माध्यम से विपक्ष अपनी राजनीतिक एकजुटता ही प्रदर्शित करना चाहता था कि भले ही सरकार आज पूरी तरह सहज हो, लेकिन उसकी यह एकता अगले आम चुनाव में उसका खेल बिगाड़कर लोकसभा का तानाबाना बिगाड़ सकती है।

हालांकि सहयोगियों को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों का ही कुछ गणित गड़बड़ हुआ, लेकिन इस मामले में भी सत्तारूढ़ गठबंधन ही कहीं अधिक फायदे में रहा। विपक्षी एकता से अधिक अगर इसे एक नेता के तौर पर राहुल गांधी की छवि चमकाने की कवायद कहा जाए तो गलत नहीं होगा। अविश्वास प्रस्ताव पर बहस के निचोड़ को देखें तो दिन में राहुल बनाम मोदी था जबकि रात में मोदी बनाम राहुल हो गया। इसमें कोई संदेह नहीं कि राहुल गांधी प्रधानमंत्री बनना चाहते हैं और वह खुद अपनी दावेदारी पेश भी कर चुके हैं जो पूरी तरह स्वाभाविक भी है। हालांकि इसका फैसला तो देश की जनता को करना है। अविश्वास प्रस्ताव पर भाषण देते समय राहुल गांधी आत्मविश्वास से लबरेज लग रहे थे। उन्होंने आक्रामक शैली में सरकार पर करारे हमले भी किए। मगर उनकी दो भाव-भंगिमाओं ने तमाम सवाल भी खड़े कर दिए।

हालांकि प्रधानमंत्री की सीट पर जाकर उनके गले लगने की मुद्रा पर लोग दोफाड़ हैं, लेकिन फिर अपनी सीट पर जाकर सहयोगी की तरफ देखते हुए आंख मारने की उनकी हरकत लोगों के एकदम गले नहीं उतरी।हालांकि उन्होंने यह जरूर साफ किया कि कांग्रेस ही मुख्य विपक्षी की भूमिका में है। साथ ही कांग्रेस ने संकेत दिए कि उसकी अगुआई में जो महागठबंधन आकार लेगा उसके नेता निर्विवाद रूप से राहुल गांधी हो होंगे। उसके दो दिन बाद हुई कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में इस पर औपचारिक रूप से मुहर भी लगाई गई। वहां स्पष्ट किया गया कि कांग्रेस की ओर से प्रधानमंत्री का चेहरा राहुल होंगे और कांग्रेस समान विचारधारा वाले दलों से समझौता करके चुनाव लड़ेगी। जाहिर है 2019 का चुनाव राहुल बनाम मोदी होगा। राहुल गांधी ने सदन में कई मुद्दे उठाए जिनमें किसान, बेरोजगार, विकास और राफेल जैसे मुद्दों की सरकार अनदेखी नहीं कर सकती।

हालांकि अपने भाषण में मोदी ने भी जबरदस्त पलटवार किया और तमाम आंकड़ों के साथ जनता को संदेश दिया कि आज भी देश को उनकी कितनी जरूरत है। वहीं विपक्ष के तमाम नेताओं के कहने का तरीका भले ही अलग रहा हो, लेकिन मुद्दे राहुल गांधी की तरह ही थे। तब क्या यह मान लिया जाए कि 2019 में जो मुद्दे होंगे वे राहुल ने तय कर दिए हैं। फिलहाल अगले कुछ महीनों में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। ये सूबे भाजपा के प्रमुख गढ़ माने जाते हैं। यहां राहुल गांधी और कांग्रेस की अग्निपरीक्षा होनी है कि वे भाजपा के मजबूत किलों में कैसे सेंध लगा पाते हैं। इनके नतीजों से ही राहुल गांधी के सियासी कद का आकलन किया जाएगा। अगर कांग्रेस इनमें बेहतर प्रदर्शन करती है तो जहां राहुल गांधी की स्वीकार्यता बढ़ेगी वहीं प्रधानमंत्री मोदी पर भी दबाव बढ़ जाएगा, क्योंकि कुछ महीनों बाद ही देश में आम चुनावों की बिसात बिछ जाएगी जिसमें एक बार फिर शह और मात का सिलसिला शुरू होगा और वही सबसे बड़ा दांव भी होगा।

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