आशा से क्रोध उत्पन्न होता है : स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती
खबरीलाल रिपोर्ट (वृंदावन) : ज्योतिष एवं द्वारका शारदा पीठ के पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज ने 9 सितम्बर 2018 को कहा – आशा से ही क्रोध की उत्पत्ति होती है। यदि आपको किसी वस्तु या व्यवहार की आशा नहीं होगी तो आपको क्रोध कभी नहीं आएगा और न ही आप निराश होंगे। इसलिए महात्माओं के हृदय में क्रोध कभी नही आता है क्यों कि वे किसी चीज की आशा ही नहीं करते है। उक्त बातें महाराजश्री ने वृंदावन में चल रहे अपने 68 तम चातुर्मास्य व्रत अनुष्ठान में उपस्थित भक्तों से कहा। इस अवसर पर उनके शिष्य प्रतिनिधि दंडी स्वामी अविमुक्तेश्वरानन्द सरस्वती मंच पर उपस्थित थे और सत्संग सभा की अध्यक्षयता कर रहे थे।
महाराजश्री ने आगे कहा कि महात्माओं को किसी भी वस्तु की न तो कामना होती है और न ही चाहत होती है की उसके न मिलने से उनका जीवन न चले और निराशा से क्रोध की उत्पत्ति हो। महाराजश्री ने यह भी कहा कि – महात्माओं को भी कभी कभी क्रोध आ जाता है। क्रोध यदि महापुरुषों के मन मे आ भी गया तो वह “क्रोधाभास” है। आपने सुना होगा , पढ़ा भी होगा कि बड़े बड़े महात्माओं ने जिन जिन को श्राप दिया है अंत मे उन्ही का कल्याण ही हुआ है। पानी मे जैसे लकीर ठहरता नहीं है ठीक उसी तरह महात्माओं के मन मे क्रोध ठहरता नहीं है, आई और मिट गई। यदि थोड़ा भी क्रोध किसी पर रह गया हो तो समझ लो उस जीव का कल्याण ही होगा। इसलिए महात्माओं का क्रोध भी अच्छा ही होता है।